गांधी - वाणी | Gandhi Vani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Gandhi Vani by श्रीरामनाथ सुमन - shriramnath Suman

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रामनाथ सुमन - Ramnath Suman

Add Infomation AboutRamnath Suman

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सत्य रे “'सेरे सामने जब कोई सत्य बोलता है तब मुके उसपर क्रोघ होने के बजाय स्वयं झ्पने ही ऊपर श्रधघिक कोप होता है | क्योंकि में जानता हूँ कि श्रभी मेरे श्रन्द्र--तह में--श्रसत्य का वास है ।”? ! .. _नवजीवन : हिं० न० जी० २७।११।२ २] सत्य में श्ररहिसा का समावेश हे 'प्सत्य में दी सब बातों का समावेश हो जाता है । श्रर्हिसा में चाहे सत्य का समावेश न होता हो पर.......सत्य में शहिसा का समावेश हो जाता दै।”? भ्द $ ९ “निमल अन्तप्करण को जिस समय जो प्रतीत हो वही सत्य है । उसपर दृढ़ रहने से शुद्ध सत्य की प्राप्ति हो जाती है ।?' द ८ 9६ “सत्य में प्रेम मिलता है; सत्य मं मूदुता मिलती है ।”? है भ्द जद “शरीर की स्थिति अटझ्लार को ही बदौलत सम्भवनीय है । शरीर का श्रास्यन्तिक नाश ही मोक्ष है । जिमवे अअहक्लार का श्रात्थन्तिक नाश दो चुका है वह तो प्रत्यच्त सत्य की मूर्ति हो जाता है |”? ७ १७३२३ : श्री जमनालाल बजाज के नाम साबरमती जेल से लिखे एक पत्र से ] सत्य ८ --*सत्य सबंदा स्वावलम्बी हाता दे श्र बल तो उसके स्वभाव में ही दोता हूं 1?” ९६८ --यं० इं० । द्विं० न० जी० १४२२४ । पृष्ठ १४० |




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now