भारतीय वाड्मय में श्रीराधा | Bharatiy Vadmay Men Shriradha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द्द भारतीय वाइ्सय में श्रीराधा राधा मे पद चिल्ली पर अपनार्पर रसते ही उन्हे रोमासच हो गया । प्रेम वी इस विभूति तथा अभिव्यक्ति को देखकर राधा प्रसतत हो गई तथा ड्रृप्ण वे प्रेस की दूंढता देखवर बृप्ण को बडे प्रेम से निरसनें लगी । इस इछाक का भाव भागवत के एव प्रसिद्ध इठछोव पर आार्थित है । स्पप्ट हैं कि अप्टम यती से पूर्व हो _राथा तथा रासछीला वा वृत्तान्त साहित्य-जगत्‌ में खूब श्रप्यातत हो चुवर था । प्चम शत्ती की रचना पचतन्त्र मे राधा तय उल्लेख स्पष्ट रुप से मिलता है । एव बानी ' है दि किसी तन्तुवाय वा पुत्र, जिसका नाम कृष्ण था, राजा वी पन्या से प्रेम में आवद्ध हो जाता है । अन्त पुर में गुप्त रूप से पहुँचना असम्भव समभवर वह अपने रथवार मिन से सहायता लेता हैं । उसका मिर उवडी का गरुडयस्त्र वनावा” तैयार वर देता है, जिसपर घश्वर वह राजा वे अन्त पुर में पहुँच जाता है। गरुड पर चढे, चार भुजाओ तथा आयुधा से युक्त उस स्पक्ति को नारायण संमभतर राजपुझ्ी कहती है-- वहाँ में अपविन मानुपी और वहाँ आप त्रैलोवयपरावन महाश्रभु ! ' इस पर बहू कौलिक बहता है--सुभगे, तुम तो सच्ची बात वह रही हो । परन्तु तथ्य यह है. कि राधानाम्ती मेरी गोपकुल में उत्पन्न भार्या पहले थी । वही तुम्हारे रुप में अवतीर्ण हुई है 1 इसलिए मेरा अनुराग तुम्द्दारे ऊपर स्वाभ।विक हैँ-- राधा नाम मे भार्या गोपकुलप्रसुता प्रयममासीतू । सा र्वमत्र अवतीर्णा । तेनाहुमत्रमत । इसे स्पष्ट हू कि राघा का गोपकुल मे उत्तन्त होता तथा नारायण (श्रीकृष्ण) वी भार्या होना लोग प्रसिद्ध घटना थी । अत यह छोकप्रिय कथा इस युग से प्राचीन होनी चाहिए । 'महाकवि भास दारा प्रणोत 'वारुचरित' कृष्ण विपयक नाटका में पर्याप्त रुपेण प्रष्यात है । इस नाइक में बालझृष्ण वी प्रसिद्ध छोलाआ का मनोरम उपन्यास है और कृष्ण के शौर्य का, दुष्टी बे दमन करने की प्रभुता का तथा ब्रज में विध्न उत्पन्न करनेवाउें मस के द्वारा प्रेरित असुरा को परास्त करने का वर्णन विशेष रूप से किया गया है । सथापि भास इस नाटक के तृतीय अक में हटरीसक नृत्य था मनोरम वर्णन वरते है, जिसमें कृष्ण गोपियो वे साथ नाचते थे और ग्वाल- मण्डली नाना प्रकार के वाद्य वजाती थी । हरलीसव नृत्य रास का ही प्रतिनिधि हैं, जिसमें एक पुरुप अनेक स्नियो के साथ वृत्ताकार में नाचता हैं'। यहाँ राधा का नाम उर्लिखित नहीं हैं, परन्तु अनेक सोपिषो के नाम चत्तंसान हैं । मोपियां वे रूप-विन्पास वर्ण नपरक यह इठक वा ही सुन्दर है-- एता. प्रफुल्लवमलोत्पलवकनेता गोपाद्धना कनकचम्पकपुष्पगीरा । १. द्ृष्टव्य मित्रमेद को पट वस कया, जिसमें गुप्त दम्म की प्रदासा की गई हैन- सग्तस्पापि दम्भस्य ग्रह्माप्यन्त न गच्छति । कौछिकों विध्णुरुपेण राजकन्या निषेवते ॥॥--पचतन्त, १२१८ २ इसी के आदर्श पर निमभित हत्लीपत (या हल्लोस) नामक एक उपरूपक होता है, जिसमें पाने और नाचने को ही प्रचूरता होती हैं । पुरुष पान एक हो होता हैं त्तया स्त्रियाँ दस तक होती हैं और दोनों मिलकर गोलाकार नाचते है । द्रष्टव्य . साहित्य- दर्पण, पप्द परिच्छेद ।. 'मावश्रकाशर्त' के अनुसार नायरकों की सश्या पाँच या छह साली गई हूं। --भावम्रकाशन, पूँ० २६६-१६७ ।




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