श्री गौतम चरित्र | Shri Gautam Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
215
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लालारामजी शास्त्री - Lalaramji Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उ्रमोधिकार 1 _रि७
उसीप्रकार वे सरोवर भी संरंस वी जेलसें भरपूर थे 'और
कांवेयोंके बचन जैसे पद्मचंथ ( कमलके आकारमें जा
शोक ) होते हैं उसीप्रकार वे सरोवर भी पश्नेचंध
कमलोंसे सुशोभित थे ॥ २७ # उस देशके पर्वतीकी सुफा-
ओपें किन्नर जातिके देव अपनी अपनी 'देवांसमा ओके साथ
क्रीड़ा करते हुए और चेट्रमाके वाहक देवोंको निश्चल करते
इुए सदा गाते रहते हैं ॥ २८ ॥ वहांके बनोंकी शोभाकों
देखकर देय लोगोंके हृदय भी कामदेवके वशीभूत झोजाते
हैं और वे अपनी अपनी देवांगनाओंके साय वहींपर क्रीड़ा
करने लग जाते हैं ॥ २९ ॥ उस देश पद' पटपर स्वालोंकी
खियां गाये चरादी थीं ओर वे ऐसी सुन्दर थीं कि उनके
रूपपर मोहिन होकर पथिक लोग भी अपना अपना मारे
चलना भूल जाते थे ॥३ ०॥.वहांकी जनता 'पमे, अर, काम इन
तीनों पुर्पार्थाको सेवन करती हुई सो भायंगाम थी, जिनेध-
मेके पालन करनेपें भारी उत्ताह रखती थी और शील्त्रतसे
सदा विभूपित्र रहती थी ॥ ३५ ॥ वहाँपर श्री जिनेन्द्रदेवके
विमलानि च | सरसानि सपद्मानि बचनानीव सत्कवे: ॥ ९७'॥
कंदरेपु गिरींद्राणां गाय्ंति यत्र किन्नरा: । स्वस्त्रीमिः क्रीडेया युक्ताः
स्थिरीकृतंदुवाहना: | २८ ॥ अमरा यत्र दीव्यन्ति स्वेवपूंभि: संमे
परा: ! वनशो मां समाठोक्य कामनिजितचेतसः ॥२९॥। पथिका यंत्र
पंथानं नाक्रामंति पदे पदे । गोपसीमंतिनीरूपसैसक्तंमानंसा श्रृवम
॥३०॥ शोभते जनता यत्र त्रिवर्गपु परायणा । जिनंधर्ममहोत्साहा
सुशीलब्रतभूषिता ॥३१॥ यत्र वसुमती जाता मूमी रत्नादिसडनमें।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...