गाँधी - मार्ग १ | Gandhi-maarg 1

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आचार्य कृपालानी - Aacharya Kripalani

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रामनाथ सुमन - Ramnath Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खादी श्र उद्योगीकरण चर पर उसमें दिये गये श्रॉँकड़ों के जरिये उसका श्न्दाज़ा कर लेना कुछ मुश्किल नहीं है। वे लगभग ७३ सेकढ़ा होती हैं । वे द्रॉंकड़े बाँख खोलने वाले हैं । इनसे पता चलता है ज़मीन पर वराबर बोक बढ़ता जा रद है । इनसे तो यही ठिंद्व देता है कि वर्तमान शासन में उद्योगीकरण के लिए मारत को कयामत के दिन तक ठदरना पड़ेगा । इसके श्रलावा उद्योगीकरण के समर्थकों के लिए क्या यह श्रघिक उचित न होगा कि वे श्रौर उद्योगीकरण की बातें करने की जगदद वतमान ढहते हुए उद्योगों की रहता करें ? श्राज़ तो जैठी स्थिति है, बिना राष्ट्री सरकार बने उद्योगीकरण के दत्र में कोई विशेष कार्य नहीं किया जा सकता । तत्र यह सवाल सहज दी उठता है कि क्या हमें श्रपने करोड़ों भूखे-नंगे देशवातियों की मदद के लिए राष्ट्रीय सरकार के श्राने को चुप बैठकर प्रतीक्षा करनी चाहिए ? यदि हम जनता की गरोवी दूर करने के पूर्व उद्योगीकरण चाहें तो फिर हमें पसन्द हो या न दो, हमें तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी । फिर भी बीच के समय में इस पीसने वाली गरीदी की सुसीबतों त्रौर भयंकरताश्रनो को दूर करने के लिए कुछ न करना वेददी' की बात होगी | प्रभावशाली तरीके पर स्वराज का काम वे ही कर सकते हैं जो जनता की 1 गरीबी को तीव्रता के साथ श्रनुभव करते हैं । यदि वे स्वराज के न्िए काम करते हुए भी श्रपने देश-भाइयों की स्थिति सुधारने के कुछ न कुछ उमाय न करें--फिर चाहे वे कितनी दी थोढ़ी सीमा तक सद्दयक द्ॉ--तो वे झ्रपने धर्स से गिरते हैं । नहीं, यद्द काम ही स्वराज का काम है | वर्तमान स्थिति में कष्ट-निवास्ण का यदद काम चर्खा श्र खादी सब से श्रच्छे तरीके पर कर सकती दे | इससे हमें जनता के सम्पक में श्राने और उसको प्रमावित करने का मौका भी मिल्नता दै श्रोर जनतों की झ्रमली मदद या कम से कम निष्क्रिय समन के बिना कोई राष्ट्रीय क्रान्ति संभव नहीं । इस बहत में मैंने गाघी जी 'के व्यक्तित्त श्रौर विचारों को बिल्कुल लग रखा दै ।.ऐसा मैंने इसलिए, किया दे कि चरखा के विरोधी मुख्य




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