नये रंग : नये ढंग | Naye Rang Naye Dhang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भी तो माख़िर इतना बड़ा है--उसे महद्वद और मखसूस करनेका मतलब ? कितनी उम्मीद थी मुझे ! अब जनाब, यह तालीमका महकमा भी अजीब भूल-भुलैयाँ है । प्राइमरी एज्यूकेडन, सेकेण्डरी एज्यूकेशन, बेसिक एज्यूकेशन, टेविनिकल एज्यूकेरान, हयमैनिटीज--तरह-तरहके गोरखधन्घें है। कोई स्कीम ही परवान नहीं चढ़ती । कवीरकों मेने कहा था कि डाक्टर ताराचन्दसे मगविरा करके, पण्डित स्दरछाल और चतुर्वेदी साहवके दस्तखत लेकर जो करना हूँ कर डाल । हमे वहुसमे नहीं पड़ना है, मुल्की तालीमकों सही नजरियेसे देखना हैँ । मगर जोग तो इन लोगोमे हूं ही नहीं । उधर जम्टूरियतका करिश्मा यह कि अब कहाँ पहुँचे कवीर, कहाँ डाक्टर ताराचन्द ! इघर पण्डित पन्त भी कविनेटमे तरारीफ लाये है । क्या कहूँ ? 'अक्लमन्दाराँ इशारा काफीस्त ।' हिन्दीवालोकी बातें में करूँगा नहीं । “महा जी वाली बातकों इन लोगोने कसा तूल दिया है ? अच्छा है अव राजगोपालाचारीसे वास्ता पडा इन लोगोका । हिन्दुस्तानीकी वातपर ये लोग टिके होते तो मुल्कमे तफरका न पडता वयोकि वोलनेकी जवान सबकी हिन्दुस्तानी हुई होती, लिखनेके लिए, भई, हिन्दी 'साहितिया' में लिखो, चाहे उरटू अदवमे और चाहे ऐसे लिखो जेसे क्रिशन चन्दर या हुमायून कबिर ! और भी तरह-तरहके झगड़े है। सियासतका काम भी कितना बड़ा काम हूँ जिसके लिए सारी कंबिनेटमे वाहिद में हूँ । पजाबका मसला खैर अब पन्त साहब देखने कगें है, मगर पाकिस्तानका मसला, मिडिल ईस्टका मसला, अरब मुल्कोंकी दोस्तीका मसला, हिन्द-चीनका मसला, यहाँतक कि हिन्दुस्तानमे बसनेवाले खालिस मुसलमानों भमौर पाकिस्तानी सुसलमानोंका मसला--सब मसले महज मेरी ही सलाहपर हल होते है । लोग चीमेगोइयाँ करते है कि में पार्लमेण्टमे दिखाई नही देता ताज्जुब तो यह है कि जिन लोगोको मै दिखायी नहीं देता उन्हें मेरा हाथ जो वे स्वयं न कह पाये ! १७




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