तेरह दिन | Terah Din

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Terah Din by श्री आत्माराम जी - Sri Aatmaram Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सलोग कहते थे, कमला की अपने पति से अनबन इसीलिए हुई है और इसी- 'तिए कप्टन वोहरा जालन्धर छोड़ अम्वाला चला गया है 1 तो क्या कमला अपने पति से अलग हो गयी है ? अम्बाला में कुछ 'दिन ठहरना, फिर शिमले जाने का प्रोग्राम ? उमा खिंडकी में से कमला को देख रही थी । कौप्टन वोहरा के साथ 'सटी-सटी-सी कमला स्टाल के पास खड़ी कोका कोला पी रही थी ! पुष्पा ने ढेर-सा नमकीन खरीदा, तली हुई दाल, बेसन के लच्छे । उमा के हाथ में लिफाफे देती हुई बोली--“'वहाँ गर्म-गर्म पकौडे वन रहे हैं, मैं भागकर ले आती हूं । तुम जरा वच्चों को पानी-वानी पिलदा दो । 'खिडकी छोड उमा अपनी जगह की ओर पलटी, देखा डिब्बा ठसाठस भर गया है। चुस्त शलवार-फ्मीज पहने दो लड़कियाँ उसके पास आती हुई चोली--''माफ कीजिएगा, हम जरा इस सीट पर बैठ सकती हैं ?” उमा इनकार नहीं कर सकी, सुरेश को अपने पास बिठलाती हुई चोली-- सुरेश, जरा इन्हें वठने दो ।”” “यह बच्चे आपके हैं ?”” उनमें से एक ने पूछा । उमा सकपका गयी । उपने जल्दी से सुरेश से कहा--“सुरेश, जरा देखना, मम्मी तुम्हारी आ रही हैं कि नहीं ? ” अब उस लडकी को अपनी गलती का एहसास हुआ । क्षमायाघना के स्वर में घोती --“माफ की जिएगा, मैं समझी थी *** ' उमा मुस्कुरा दी--''कोई बात नही, एक तरह से यह अपने ही बच्चे हैं, मेरी जेठानी के बच्चे हैं ।”” दूसरी ने घट से कहा--“तभी मैं भी सोच रही थी कि आप इतनी आयु की मालूम तो नही होती ***”” उमा ने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा, फिर हुँसते हुए बोली--''आप दोनों शायद दिल्‍ली जा रही हैं ?” जी ! हम लोग वही न्ट्स्द नीले सरकोनवुसत पोशाक चाली बोली । सच पल तभी गाई ने सीटी दी; सुर 'घव सके मीलिं उठी ०५ आस मनी ही आयी 1” हि “्िग, हर ही




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