हस्तरेखा शास्त्र का वैज्ञानिक विवेचन | Hastrekha Shastr ka Vagyanik Vivechan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 / हस्तरेखाशास्त्र का वैज्ञानिक विवेचन एक विशुद्ध विज्ञान है जो कारण कार्य व नियम पर आधारित है। इस तथ्य की उपेक्षा करके अनुमान कल्पना और अटकल के आधार पर भविष्यकथन करने वालों ने इस शास्त्र का अवमूल्यन ही नहीं अपितु बहुत बड़ा अहित भी किया है । सृष्टि-रचना की योजना और उसके उद्देश्य को समझने के समान ही हस्तरेखा- विज्ञान के रहस्यों को समझना भी अत्यन्त सरल है । इसके लिए केवल रुचि प्रवृत्ति और थोड़े-बहुत श्रम की आवश्यकता है । सत्य तो यह है कि हाथ में विद्यमान पर्वत सृष्टि- योजना की जानकारी पाने में सहायक हैं । इनकी धास्तविक स्थिति और सीमा की प्रामाणिकता को जानने के लिए रेखाचित्र-क देखिये। यहां यह स्पष्ट करना अनुचित न होगा कि हाथ के इन सात उभारों को पर्वत नाम देने के पीछे कोई आधार अथवा फलित ज्योतिष सम्बन्धी कोई मान्यता नहीं है । वस्तुत इन नामों के सुदीर्घकाल से प्रचलन में रहने के कारण ही इन्हें स्मरण रख पाना सहज-सरल हो गया है अन्यथा इनकी न तो कोई भूमिका है और न ही इनसे किसी प्रकार की ग्रह-सम्बन्धी कोई जानकारी मिलती है । विश्व के सभी मनुष्यों को सात वर्गों में विभाजित करने की प्राचीन परम्परा के पीछे कदाचितू यह धारणा ही कार्य कर रही है कि विधाता ने एक सुनिश्चित योजना के अन्तर्गत ही सृष्टि की रचना की है परन्तु फिर भी कुछ ऐसे भ्रमजाल हैं जिन्हें मानव आज तक सुलझा नहीं पाया । इतना तो निश्चित है कि जब कुछ सुलझ जाता है तो मानव के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहता । वह यह जानकर ठगा रह जाता है कि इस उलझन का हल तो पहले से उसी के भीतर छिपा हुआ था। इसमें कोई सन्देह नहीं कि विधाता ने सभी मनुष्यों को स्पष्ट रूप से सात श्रेणियों में विभाजित किया है । प्रत्येक श्रेणी का प्रतिनिधित्व करने वाले व्यक्ति कुछ सुनिश्चित एवं स्थायी विशेषताएं रुचियां गुण-दोष तथा स्वास्थ्य एवं चरित्र सम्बन्धी भिननताएं रखते हैं। इस योजना--मानव-जाति का सात वर्गों में बिभाजन--का उद्देश्य सृष्टि-सज्चालन में सामज्जस्य लाना प्रतीत होता है । यठ विभाजन ही विभिन्‍न क्षेत्रों-प्रतिभा का विकास शरीर-गठन स्वास्थ्य की स्थिति अभिव्यक्ति की क्षमता तथा व्यवहारकुशलता आदि--में विविधता और विभिन्‍नता का आधार है। सभी मनुष्यों को एक वर्ग में रखने का अर्थ होता-मनुष्य-जाति को उजडु बनाना व उसके विकास को अवरुद्ध करना । सत्य तो यह है कि इन सात श्रेणियों में से किसी एक श्रेणी को निकालना भी घड़ी के किसी एक चकक्‍के को निकालकर उसे गतिहीन बना देने के समान ही होगा । अत स्पष्ट है कि प्रत्येक श्रेणी किसी विशेष तत्त्व का प्रतिनिधित्व करती है और सृष्टि के कार्य-व्यापार के सज्चालन में प्रत्येक श्रेणी का अपना पृथक महत्त्व एवं योगदान हैं। इन सातों श्रेणियों के व्यक्तियों से मिलने पर उनके चरित्र व उनकी विशेषताओं




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