सामान्य भाषा विज्ञान | Samanya Bhasha Vigyan

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Samanya Bhasha Vigyan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सापा है हैं । उसके मविष्य का भी थोड़ा बहुत श्रनुमान शायद कर सकें | भाषा के बारे में हमें इस वात का ध्यान रखना चाहिए कि जिन ध्वनियों से किसी विशेष जीव या वस्तु का बोध होता है उनका उस जीव या वस्तु से कोई नियत स्वाभाविक संबंध नहीं, केवल सामयिक व्यवहार का संबंध है | यदि कोई नियत स्वासाविक संबंध होता तो प्रत्येक काल श्र देश में गाय और कमल का बी थर्थ होता जो हम हिंदी वाले समझते हैं | तब न भाषा में परिवर्तन होता श्रौर न विभिन्नता ही रा पाती | यद्यपि मनुष्य ध्वनि संकेतों का नायास ही व्यवहार करता रहता है श्रौर कभी उनका विश्लेषण करने नहीं वेठता पर यदद ध्व निर्यां विश्लेषण सह्य हैं । विधाता की इस सष्टि में इन ध्वनियों की संख्या अनंत है औऔर प्रत्येक जनसमुदाय केवल एक थोड़ी सी संख्या का प्रयोग करता है । ध्वनियों का विश्लेषण सर्वप्रथम वेथ्वाकरणों ने किया । श्रुति के अनुसार इंद्र ने वाणी” को दो हिस्सों में विभक्त किया था | भाषा के विश्लेपण का यह प्रथम उल्लेख है । भाषा के च्योतक हमारे पुराने शब्द वाकू और वाणी हैं लिनमें बोलने का ्र्थ निहित है । वाकू का दूसरा श्रर्थ जिह्ा का भी होता है । जिहा बोलने में प्रमुख भाग लेती है, इसीलिए, शायद श्रन्य भाषाओं में भी जिह्दा श्र भाषा के लिए समान शब्द हैं | फ़ारसी का ज़वान, अंगरेज़ी का टंग (७०8०७), फ्रैंच का लाँग, लॉगाज़ (1608७, 1 8.0ु886), लैटिन का लिंगुआ (008०७ < ताए््ठए8) और यूनानी का लाइख्ाइन (/ठीाछांग) जो भाषा के श्रथ में प्रयोग में श्राते हैं, सभी के मूल में जिहा का श्रर्थ है । अंग्रेज़ी का स्पीच (306600, जर्मन स््राखेन (80160) और अरबी लिस्सान प्रायः उसी श्रर्थ के दयोतक हैं जिसका कि हमारा शब्द सपा ।




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