ज्ञानदीपिका जैन | Gyandipika Jain

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Gyandipika Jain by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) पूवपपी के ग्रन्थ में मिथ्या लेख फिर तिस का उत्तरपप्ती की तरफ से खण्डन ४ अवस्था ओर '४ निश्तेष भगवान के वन्दन योग्य हैं इस का ख़ण्डन साधु को -ढोल ढपाके से नगर में लाना किस न्याय से एसे मश्नोत्तर और तिस का खण्डन . ........ ........ .... इन का वेष और देव गुरु धरम जिन सूत्र से आमिठत है ऐसा लिखा है ओर मुख वखिका के विषय में बूटे राय संवगी कृत पुस्तक का प्रमाण भी लिखा है .... अधथ द्वितीय भाग सूचीपत्रम द्वितीय भाग प्रारम्भ ओर द्रिवीय भाग में ७ सात अड हैं तिस में प्रथम १ देव अड्ध सो तिस में नाम मात्र देव का स्वरूप है २ दूसरा गुरु अंग सो साधु का ९ नों वाड़ ब्रह्मच्य की और गुप्तादि बहुत .




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