भारतीय सहकारिता आन्दोलन | Bhartiya Sahkarita Andolan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
332
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सददकारिता के सिद्धान्त श्र
देता है और समाज में घोर समानता उतन्न करता दे । 'आधु-
निक युग में पूँ जोपतियों '्औौर श्रमजीवियों मे जो भयंकर संग्राम
छिड़ा हुआ हैं, “ पूंजी पतियों को नष्ट करदो ” की जो श्ाचाऊक
चारों ओर से सुनाई देरद्दी दे, वह इस सिद्धान्त के द्वारा उत्पक्
हुई झार्थिक झसमानता के कारण दी उठाई गई है ।
संसाज अपने निवंल्र सदस्यों को ठीक उसी प्रकार
नष्ट होते नद्दीं देख सकती, जिस प्रकार साता पिता अपने
लंगड़े अथवा लूले पुत्र को मरते नदी देख सकते । समाज
का मूल सन्त्र शक्तातिजीवन न द्ोकर “ निवेलों की रक्षा
दोना चाहिये । यदि हम चाहते हैं कि समाज में उत्पन्न हुई घोर
'ार्थिक विपमता के कारण, हमे भयंकर क्रांतियो का सामना स
करना पड़े तो दमे सहकारिता को अपनाना होगा । सददकारिता
निवंलो की रक्षा करती है, वदद उनको निवेल नद्दी रहने देती, चरन
उनकी संगठित करके शक्तिवान बनाने का प्रयत्न करती है ।
सहकारिता आन्दोलन उन लोगों की उन्नति मे चाधक नहीं होता
जो कि शक्तिवान हैं और प्रतिस्पर्धा में अपने पैरों पर स्वयं खड़े
हो सकते हैं; सहकारिता का ऐसे लोगो से कोई सस्वन्ध नही है ।
वह तो केवल निधन तथा निवंलो का आ्रान्दोलन है; पारस्परिक
सद्दायता और सहाजुभूति इसके मुख्य सिद्धान्त है, और सेवा
इसका लद्य है ।
यह तो पूवे ही कद्दा जा चुका है कि मनुष्य का कोई भी कार्य
बिना दूसरों के सहयोग के नहीं दो सकता, किन्तु आधुनिक
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