भारतीय सहकारिता आन्दोलन | Bhartiya Sahkarita Andolan

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Bhartiya Sahkarita Andolan by एम. एस. सक्सेना - M. S. Saxena

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सददकारिता के सिद्धान्त श्र देता है और समाज में घोर समानता उतन्न करता दे । 'आधु- निक युग में पूँ जोपतियों '्औौर श्रमजीवियों मे जो भयंकर संग्राम छिड़ा हुआ हैं, “ पूंजी पतियों को नष्ट करदो ” की जो श्ाचाऊक चारों ओर से सुनाई देरद्दी दे, वह इस सिद्धान्त के द्वारा उत्पक् हुई झार्थिक झसमानता के कारण दी उठाई गई है । संसाज अपने निवंल्र सदस्यों को ठीक उसी प्रकार नष्ट होते नद्दीं देख सकती, जिस प्रकार साता पिता अपने लंगड़े अथवा लूले पुत्र को मरते नदी देख सकते । समाज का मूल सन्त्र शक्तातिजीवन न द्ोकर “ निवेलों की रक्षा दोना चाहिये । यदि हम चाहते हैं कि समाज में उत्पन्न हुई घोर 'ार्थिक विपमता के कारण, हमे भयंकर क्रांतियो का सामना स करना पड़े तो दमे सहकारिता को अपनाना होगा । सददकारिता निवंलो की रक्षा करती है, वदद उनको निवेल नद्दी रहने देती, चरन उनकी संगठित करके शक्तिवान बनाने का प्रयत्न करती है । सहकारिता आन्दोलन उन लोगों की उन्नति मे चाधक नहीं होता जो कि शक्तिवान हैं और प्रतिस्पर्धा में अपने पैरों पर स्वयं खड़े हो सकते हैं; सहकारिता का ऐसे लोगो से कोई सस्वन्ध नही है । वह तो केवल निधन तथा निवंलो का आ्रान्दोलन है; पारस्परिक सद्दायता और सहाजुभूति इसके मुख्य सिद्धान्त है, और सेवा इसका लद्य है । यह तो पूवे ही कद्दा जा चुका है कि मनुष्य का कोई भी कार्य बिना दूसरों के सहयोग के नहीं दो सकता, किन्तु आधुनिक




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