ऋग्वेद संहिता पंचम अष्टक | Rigweda Sanhita Pancham ashtk

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Rigweda Sanhita Pancham ashtk by रामगोविन्द त्रिवेदी वेदंतशास्त्री - Ramgovind Trivedi Vedantshastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ अ०्, है म०, है अध्या०, ६ अनु० ] सटीक ऋग्वैदसं हिंता फ ब्यन्यनननननणणनगसलगाानागाा्त्तयल्‍एयएस्‍ंगगगतयतयल्‍यस्‍ल्‍यल्‍ं”ीण््तएयस्‍यएस्‍”तल्‍तयस्‍यस्‍यएतएतल्‍एएतल्‍स्‍एस्‍एएयल्‍एल्‍एएएल्‍एएएल्‍एएल्‍एल्‍एएल्‍ल्‍एएल्‍ल्‍एल्‍ए।ल्‍एएल्‍एएतएतयतल्‍एल्‍एय हम हे श्रवो वाजमिषमूज वहन्तीनि दाशष उपसो मत्याय । मघो नोवीरचत्पत्यमाना अत्रों घात विधते रलमय ॥३॥ इदा हि तो तिघते रत्नमस्तीदा वीराय दाशुष उपातः । इदां विप्राय जरते यदुक्‍्था निष्म मावते वहथा पुरा चित्‌ ॥४॥ इदा हि त उषो अद्रिसाना गोत्रा गवामडगिरसा रगन्ति । व्य १ केंण बिभिदु्र ह्मणा च. सत्या नुणामभवद वहुतिः ॥५॥। उन्छा दिवो दुद्दित: प्रस्नवननों भर! जवद्धियते मघानि । सुबीर रयिं ग्रणते रिरीझ रुगा यमधि घेहि श्रवों नः 1 ६॥ ८८ सत्त मरुद्गण देवता । भरद्वाज ऋ पे. ज्रिप्टुप्‌ छन्द । वपुनु तच्चिकितुष चिद्स्तु समान नाम घेनु पत्यमानमू्‌ । मर्तेष्वन्यदोहसे पीपाय । सक़न्छक्र' दुदुह॒ प्रदिनिसघ: !1१॥ २ उपा देवियों, तुम हव्यदाता मनुष्यका कीत्ति, बल. अग्न और रस दान करती हो । तुम घनशालिनी ओर गमनशीला हो । आज परिचय करनेचालेका पुत्र-पीत्र आदिसे युक्त अन्न और घन दो | ४. उषा देधियो, तुम्हारी परिचया करनेयालेके लिये इस समग्र घट है. इछ समय वीर +्व्य- दाता के लिये तुम्दारे पास घन है । इस समय प्राज्न स्तोताके लिये तुत्हारे पात्र घन हैं जिन पियें उकथ नामक मन्त्र हैं, ऐसे मेरे समान व्यक्तिको, पहलेशी तरह, वहीं घन दो | ५ गिरितट-प्रिय उषा देवों, अड्लिरा छोगोंने तुम्हारी छृपासे तुस्त ही गायोंको छोड़ दिया था और पूजनोय स्तोत्र द्वारा अन्घकारका चघिनाश किया था । नेता +ड्िरा लोगोंकी स्तुति सत्य- फलवबती हुई थी | ६ यलोक-पुषी उषा, प्राचीन लोगोंको तरह हमारे लिये अन्घकार दूर करो . घनशालिनी उषा, भरद्वाजकी तरह स्तुति करनेवाले मुप्े पुत्र-पीत्र आदिसे युक्त 'न दो । हमें अनेकोंके गन्तव्य अन्न दो । १ मरुतों « समान, स्थिर पदार्थोमें भी ्थिर प्री तकर आर ग तपरायण रूप, विद्वान्‌ स्तोताके निकट, शीघ्र प्रकट हो । वह अन्तरीक्षमें एक॑ धार शुर्कवर्ण जल क्षरण करता और मत्यंलो में भन्य पदाथ दोदन फरनेके लिये बढ़ता हैं ।




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