ऋग्वेद संहिता पंचम अष्टक | Rigweda Sanhita Pancham ashtk
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about रामगोविन्द त्रिवेदी वेदंतशास्त्री - Ramgovind Trivedi Vedantshastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ अ०्, है म०, है अध्या०, ६ अनु० ] सटीक ऋग्वैदसं हिंता फ
ब्यन्यनननननणणनगसलगाानागाा्त्तयल्एयएस्ंगगगतयतयल्यस्ल्यल्ं”ीण््तएयस्यएस्”तल्तयस्यस्यएतएतल्एएतल्स्एस्एएयल्एल्एएएल्एएएल्एएल्एल्एएल्ल्एएल्ल्एल्ए।ल्एएल्एएतएतयतल्एल्एय
हम हे
श्रवो वाजमिषमूज वहन्तीनि दाशष उपसो मत्याय ।
मघो नोवीरचत्पत्यमाना अत्रों घात विधते रलमय ॥३॥
इदा हि तो तिघते रत्नमस्तीदा वीराय दाशुष उपातः ।
इदां विप्राय जरते यदुक््था निष्म मावते वहथा पुरा चित् ॥४॥
इदा हि त उषो अद्रिसाना गोत्रा गवामडगिरसा रगन्ति ।
व्य १ केंण बिभिदु्र ह्मणा च. सत्या नुणामभवद वहुतिः ॥५॥।
उन्छा दिवो दुद्दित: प्रस्नवननों भर! जवद्धियते मघानि ।
सुबीर रयिं ग्रणते रिरीझ रुगा यमधि घेहि श्रवों नः 1 ६॥
८८ सत्त
मरुद्गण देवता । भरद्वाज ऋ पे. ज्रिप्टुप् छन्द ।
वपुनु तच्चिकितुष चिद्स्तु समान नाम घेनु पत्यमानमू् ।
मर्तेष्वन्यदोहसे पीपाय । सक़न्छक्र' दुदुह॒ प्रदिनिसघ: !1१॥
२ उपा देवियों, तुम हव्यदाता मनुष्यका कीत्ति, बल. अग्न और रस दान करती हो ।
तुम घनशालिनी ओर गमनशीला हो । आज परिचय करनेचालेका पुत्र-पीत्र आदिसे युक्त अन्न और
घन दो |
४. उषा देधियो, तुम्हारी परिचया करनेयालेके लिये इस समग्र घट है. इछ समय वीर +्व्य-
दाता के लिये तुम्दारे पास घन है । इस समय प्राज्न स्तोताके लिये तुत्हारे पात्र घन हैं जिन पियें
उकथ नामक मन्त्र हैं, ऐसे मेरे समान व्यक्तिको, पहलेशी तरह, वहीं घन दो |
५ गिरितट-प्रिय उषा देवों, अड्लिरा छोगोंने तुम्हारी छृपासे तुस्त ही गायोंको छोड़ दिया था
और पूजनोय स्तोत्र द्वारा अन्घकारका चघिनाश किया था । नेता +ड्िरा लोगोंकी स्तुति सत्य-
फलवबती हुई थी |
६ यलोक-पुषी उषा, प्राचीन लोगोंको तरह हमारे लिये अन्घकार दूर करो . घनशालिनी
उषा, भरद्वाजकी तरह स्तुति करनेवाले मुप्े पुत्र-पीत्र आदिसे युक्त 'न दो । हमें अनेकोंके गन्तव्य
अन्न दो ।
१ मरुतों « समान, स्थिर पदार्थोमें भी ्थिर प्री तकर आर ग तपरायण रूप, विद्वान् स्तोताके
निकट, शीघ्र प्रकट हो । वह अन्तरीक्षमें एक॑ धार शुर्कवर्ण जल क्षरण करता और मत्यंलो में
भन्य पदाथ दोदन फरनेके लिये बढ़ता हैं ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...