सुरईश्वर और सम्राट अकबर | Surishwar Or Samrat Akbar

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Surishwar Or Samrat Akbar by मुनि विद्याविजय - Muni Vidyavijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(दे 2 तब मेरे मनमें इस भावनाका उदय हुआ कि, केवल धार्मिक टष्टिहीसे नहीं वलके ऐतिहासिक और धार्मिक दोनों इृष्टियोंसें, द्दीरविजयसूरि ओर अकपरसे सेवंघ रखनेदाढा एक स़्तंत्र श्रेय छिखना चाहिए । इस विचारकों कार्यमें परिणत करनेके छिए मैंने उसी चातुमाससे इस विपयके साधन एकत्र करनेका कार्य प्रारंम कर दिया । नव काय॑ प्रारंम किया था तब, सूरप्नमें मी, मुझे यह खयाछ न आया था कि; में इस विपयमें इतना लिख॒सकूँगा, मगर जैसे जेसे में गहरा उतरता गया और सुझे अधिकाधिक साधन मिलते गये वेसे ही वेसे मेरा यह कायेक्षेत्र विशाल दोता गया; और उसका परिणाम यह हुआ कि, जनताके सामने मुझे, अपने इत धुद्ठ प्रयाप्कता फर उपस्थित करनेमें दीवकालका मोग देना पड़ा । साधुषर्मके नियमानुप्ार एक वर्षम आठ महीनेतक हम पैदल ही परिभ्रमण करना पढ़ता हैं इससे भी पस्तवक्ते तैयार होने बहुत ज्यादा समय छग गया । इस पुस्तकर्ष यथासाध्य, प्रत्येक चातकी सत्यता इतिहास्रद्वारा ही प्रमाणित करनेका प्रयत्न किया गया है । इसी लिए हीरविजयसू रिके संबंधकी कई ऐसी वार्तें छोड़ दी गई हैं, जिन्हें लेखकोंने केवछ सुनकर ही बिना आधारके लिख दिया है। मैंने इस्त ग्रंयंम केवरु उन्हीं वारतोंका सुख्यतथा, उछेख किया हैं जिन्हें हीरविजयसूरिन अथवा उनके शिष्योंनि अपने चारिन्रदछ और उपदेदद्वारा की-कराई थीं और जिनको जेन छेखकॉक साथ ही. अन्यान्य इतिहासकारोने भी लिखा है । इस य्रंथको पढ़नेवाढे मी भांति जान जायँगे कि, हीरविजयसूरि और उनके शिष्योंनि, केरल अपने चारित्वठ और उपदेशके प्रभावहीसे, अकबरके समान मुसलमान सम्राट्पर गहरा असर ढाछा था । यही कारण था कि जैनॉकः संबंध मुगल साम्राउयकें साथ अकवर तक ही नहीं रहा बल्के पीछे ४, ५ पीढ़ी तक-




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