चक्कर क्लब | Chakkar Club

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Chakkar Club by यशपाल - Yashpal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पु [ चक्कर क्लब कहा जाता है। दीवारें थी हल्के नीले रंग में पुत्ती' हुई । जन पर काच सढ़े बड़े-बड़े फ़ेमों में चित्र सटक रहे थे :--यमुवा तीर पर चीरदरण, प्रसिद्ध सिनेमा नटी क्लारा बी, सर्तकी ह्लाइटरोज, सृत्यरता मेनका और नील-वर्ण कृष्ण के गले में गोरी बांह डाले, वंशी की शिक्षा प्राप्त करतों हुई राधिका । भीचे तीन-वार छोटे फ्रेमों में योरूपियत' चित्रों की प्रति- छाप थी । बंगीठी की कानस पर बिछी जाली की झालर पर विलायती उर्वशी (विनिस) धर रम्पा (डायना) की ह्ाथ-हाथ भर कद को सर्ते' मूर्तियां विस्मय की सुद्रा में खड़ी देखते बालों को विस्मित कर रही थी । फर्श पर बिछा था नीला कालीन 1 कमरे के एक कोने में रखा था रेडियो, जो दोपहर के प्रोग्राम में गा रहा था--मसोरे अंगना में आगे आली, मैं चाल चलूं संतवाली' '। चोली पै नजरिया जाय, सोरी दूसरी लिपट मोचे जाय रेडियो के समीप खड़ी थी, प्याज की गांठ की तरह अनेक छिंलकों मैं लिपट कर रहने वाली एक युवती । आयु के विचार से वे युवती थी परन्तु घर की सहुलियत के विचार से लड़की । उनकी साड़ी का भड़कीला लाल किनारा कमर से ऊपर और नीचे के परृष्ट भागों की लोर संकेत कर रहा था । उनके एक हाथ में था सारंग+ 1 रेडियो की टेबिल पर उसके दायें हाथ की उंगलियां और कालीन पर दांये पैर की चप्पल ठाल दे रही थी । बायें पैर पर बोझ दिये उनका शरीर डोल रहा था । दूसरे कोने में ढलती आयु के एक भलगाइुस सुबह का अखबार देख रहे थे | क्लब के लोग घुघुनी चबाते हुए उड़ती-उड़ती नजर उस भर फेंक लेते थे । क्लब में सन्नाटा था क्योकि क्लब के इतिहासश कहाने वाले सब से बड़बोल मेम्बर सतृष्ण आंखों से खिड़की की राह उस ओर टकटकी सथाये थे । गहपति ने उन्हें उस ओर धूर-धूर कर न देखते रहने के लिये कहा परन्तु उत्तर मिला--हम किसी का कुछ छीन लेते हैँ क्या ? देखना (न अप न धन रू करेडियो के प्रोग्राम का पल




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