हिंदी भाषा | Hindi Bhasha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
189
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पटना अच्याय
धखि ण्द
भारतवप की प्राचीन भाषाएं
संसार में जितनी भाषाएँ हैं, उन सबका इतिहास वड़ा ही मनो-
रंजक तथा चित्ताकषक दे, परन्तु जो भाषाएँ जितनी ही ब्पधिक प्राचीन
होती हें दौर जिन्होंने द्यपने जीवन में जितने
च्प्रघिक उलट-फेर देखे होते हैं, वे उतनी ही चधिक
मनोहर ्ोर चित्ताफपक होती हैं । इस विचार से भारतीय भाषाओं का
इतिहास बहुत कुछ मनोर॑ जक चोर सनोहर है । भारतवष ने अ्ाज तक
कितने परिवतन देखे हैं, यह इतिहास प्रेमियां से छिपा नहीं है। राज-
नीतिक, सामाजिक त्योर धार्मिक पर्वितनों का प्रभाव किसी जाति की
स्थिति ही पर नहीं पढ़ता, अपितु उसकी भाषा पर भी बहुत कुछ पढ़ता
है। भिन्न-भिन्न जातियों का संसग होने पर परस्पर भावों योर उन
भावों के योतक शब्दों का आदान-प्रदान होता है; तथा शब्दों के उच्चारण
में भी कुछ-कुछ विकार हो जाता दे। इसी कारण के वशीभूत होकर
भाषाद्यों के रूप में परिवतन हो जाता है आर साथ ही उनमें नए-नए
शब्द भी आरा जाते हैं । इस द्वस्था में यदि दृद्ध भारत की भाषाओं की
च्पारंभ की अवस्था से लेकर वतमान दवस्था तक में ्याकाश पाताल
का अंतर हो जाय, तो कोई ऋ्राशचय की बात नहीं है : ध्यब यदि दम इस
परिवतन का तथ्य जान सकें, तो हमारे लिये वह कितना मनोर॑जक
होगा, यह सहज ही ध्यान में च्ा सकता है। साथ ही भाषा अ्पपना
च्यावरण हटाकर अपने वास्तविक रूप का प्रदर्शन उसी को कराती है, जो
उसके अंग-प्रत्यंग से परिचित होने का अधिकारी दै । इस प्रकार का
्पधघिकार उसी को प्राप्त होता है जिसने उसके विकास का क्रम भली-
भाँतिदेखादे।
भाषाओं में निरंतर परिवतन होता रहता दे जो उनके इतिहास को
च्यौर भी जटिल, पर साथ ही मनोहर; बना देता है । भाषाओं के विकास
ता ०
1बजवन्घनश
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