तीसरी भूख | Tisari Bhookh

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Tisari Bhookh by अनन्त गोपाल शेवड़े - Anant Gopal Shevade

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाइयों और बहनों ! भाषण हुआ, जनता मंत्र-मु्घ की तरह एक-एक शब्द सुनती रही, भाषण से जनता में श्रपार जाणति की लहर फैल गयी है, श्रीमान जी का करतल- ध्वनि के साथ उत्साह-पूर्वक स्वागत किया गया, फूल मालाएँ पहनायी गयीं , ...... .इत्यादि इत्यादि । गांधी जी ने कहा है कि त्रिघायक कार्यक्रम झपनाश्रो, ठोस काम करो । श्रीमान जी ने कहा, तुम रात्रि की पाठशाला चलाश्रो, हम उसका उद्घाटन कर देंगे । तुम चरखा चलाश् हम उसके महत्व पर सार-गर्मित भाषण दे देंगे । हम दौरा करेंगे, संगठन के महत्व पर भाषण देंगे । बाकी काम तुम्हारा, बोलने का काम हमारा । यानी श्र कोई काम करने की ज़रूरत नहीं है, सिफ़े बोलने का ही काम है । जब देखो तब चर्चा, वाद-विवाद, सभा- परिघद और भाषण ! मानो बोलने का रोग ही हो गया है । काम श्र झ्रकष्ल की कोई बात हो तो उसमें कहने वाले का कल्याण है श्रौर सुननेवाले का भी । समाज का कल्याण है और देश का भी | लेकिन बात सिफ़ इसीलिए, करना है कि उससे व्यक्तिगत प्रतिष्ठा बढ़े । “लीडरी” कमायी जाय तो ऐसे भाषण जितने कम हों उतना ही अच्छा । आज़ादी की लड़ाई में या चुनाव के जमाने में यदि कुछ व्यवस्थित भाषण दिये जायें तो बिलकुल सही बात है । लेकिन जब ठोस कार्य करने का समय आरा गया है श्रौर राष्ट्र-निर्माण के कार्य की ज़िम्मेदारी शा गयी है, उस समय बोलना बंद करना ही सबसे बड़ा काम है । क्योंकि जक तक बोलना बंद न हो, तब तक काम कैसे शुरू हो सकता है ? और ये भाषण-बहादर लोग उतने ही रण-बहादर होते तो बात भी थी । लेकिन कई तो भाषण देने के समय सबसे श्रव्वल रहते हैं और जहाँ लड़ाई शुरू हुई श्रौर आ्राँच लगने का समग्र आया कि पहले रणछोड़ बन जाते हैं । 1 जा




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