रामचरितमानस में रोग तथा उनकी चिकित्सा | Ramacharitamanas Me Rog Tatha Unki Chikitsa

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Book Image : रामचरितमानस में रोग तथा उनकी चिकित्सा  - Ramacharitamanas Me Rog Tatha Unki Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ किसी गुण विशेष की निम्नता ब्माव विकृति अथवा न्यन विकास की आए ही नहीं होती वन इन मुण्ाँ की शैष्ठता सवं अत्यधिक उपस्थिति की दिशा में सी हो सकती है । अत सामान्य गुणा के इन दोनों छोराँ पर यह असामा स्यता दिखाई पढ़ती है । फिर मी हमारे अध्ययन के लदष्य मानसिक रौग के दाज्र मैं विकृत लदाण ही होते हैं क्यों कि व्यवहार मैं अमियौजन सम्बन्धी समस्या प्राय हस्हीं में हुआ करती है | उपयुक्त कारण से असामान्यता के स्वरूप की व्याख्या विभिन्‍न ढुष्टि- कोणा से निम्नलिखित आधार पर की गई है - साख्यकीय आधाए हल सतत वादा वेधि दाल पा वकला सा ता वा बहती पक आों हस दुष्टिकोश के अनुसार किसी मी जनसख्या के अधिकाश व्यक्ति हामात्य शरेण्णी मैं आते हैं । ऐसे व्यक्ति जी बुद्धि व्यक्ति त्व-स्थितता ब्यवा सामाजिक जनुकुलन की बोसत मात्रा बोर इमता मे युक्त होते हैं उन्हें घायास्य जिनमें इन गुण्णाँ की मात्रा ऑसत थे कम हाँती है उन्हैं अपामान्य ओर जिनमें ओसत से अधिक होती हे उन्हें अष्ठ कहते हैं | अभियीजना लक आधार का लात एल पलों पलक आता लव पतताए सकता शत लक शत शक बातो सता सका इस सिद्धान्त के अनुवार हम किसी व्यक्ति कीं उसी सीमा तक साधान्य कह सकते हैं जिस सीमा तक वह नैद्कि-सासा जि वास्तविकता कै प्रलि अभियी जित अथवा उनके बकुल है । इस प्रकार इस सिद्धान्त के अनुसार मानसिक असामास्यता का निर्णय मुख्यहूप है बामा किक प्रतिमानाँ और नैतिक सास्कृतिक सान्यतालीं के ब्लुसार किया जाता है | बेब राबायनिक सन्सुलन ओर मान लिंक असामा न्थतायें कि मानसिक रौगाँ कै देत्र मैं जेव-रासाय मिक संतुलन जेसे प्रतिमान उपलब्ध न होने के कारण असामान्य मानसिक प्रति कियाओँ के स्वरूप के सम्बन्ध मैं अल्य घिक मतनेद




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