बृहदारन्यक उपनिषद | Brihadaranyak Upnishad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38.14 MB
कुल पष्ठ :
371
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं राजाराम प्रोफ़ेसर - Pt. Rajaram Profesar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ चददारण्यक-उपनिषद आगे बढ़ने वाला हो कर वह घोड़ा देवताओं को गया बाजी हो कर गन्धर्वों को दौड़ने वाला हो कर असुरों को और अश्व सामान्य घोड़ा हो कर मचुष्यों को । समुद्र ही+# इसका बन्घु है और समुद्र ही इसका उत्पत्ति स्थान है ॥ दूसरा ब्राह्मण 1 अधि ब्राह्मण नेवेद किंचनाग्र आसीन्सत्युनैवेदमाइतमासीत्अ- नायया । अशनाया हि सृत्युः । तन्मनो5कुरुता त्मन्वी स्या- मिति । सोध्चन्नचरत् तस्याचेत आपोब्जायन्तातेपेमे कमभूदिति तदेवाकस्याकंत्वं । क हवा अस्त भवति य ऋ हु रू त्चं च्द एचमतदुकस्वाकत्व बढ ॥ ३ ॥. पहले यहां कुछ नहीं था जो अब यहां दोखता है । सत्यु से ही यह ६ दृश्य ढका हुआ था-भूख से हु क्योंकि भूख सत्य है । के समुद्रनदधावस्था में प्रकति जिस से आगे घविराटू उत्पन्न हुआ समुद्र--परमात्मा अथवा घसिद्ध जो समुद्र है शंकराचाय | 1 इस ब्राह्मण का नाम अभ्नि ब्राह्मण है । इस में अश्च- मेघ के अधि का तत्व उपदेश किया है यह साध्यन्दिन शतपथ १० 1 ६1५ मेंहे।॥ न १ जिस तरह सड्टी के बतन मट्दी से निकल कर अछग रह कर फिर मडट्टी में मिल जाते हैं । और मट्दी ही बन जाते हैं । इसी तरह यह जगत प्रकृति से निकल कर फिर प्रकृति में मिल जाता है. और प्रछृति ही बन जाता है । उस प्रकृति के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...