ज्योतिर्धर जय | Jyotirdhar Jay

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Jyotirdhar Jay  by मधुकर मुनि -Madhukar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११३) की सायना मा तेज झलक रहा है । जीव लोर जगत के प्रति समत्वहप्टि, आत्मवादी चिल्तन, आइम्वर रहित साधना एवं आत्मनिप्ठा के साय लोक तल्याण को विशुद्ध भावना स्वानकवासों धर्म साधना की अपनी मूल विगेषता है यौर इन विशेषताओं का पुन प्रस्फुटन इसी सोलहबीं शताब्दी के धर्मवीर सॉफाशाह की ऊजेस्विन चिन्तन भूमि में हुआ । लॉकाशाह बपने युग के श्रांतिकारी धर्म सुधारक थे । सत्य के निर्मोक थोजो एवं प्रवक्ता थे । जैन धर्म के उच्च आदर्शों, पविधन साधना पद्धतियों एवं चेतन्य-पूजक जीवल विचारों का दर्शन जिस सुदमता के साथ लॉक शाह ने प्रस्तुत किया, वह केवल स्यानकवासी परम्परा के लिए ही नहीं, अपितु भारतीय धर्म परम्परा के लिए मी एक गोरव पूर्ण घटना है । सलोकाशाह की विचार जागृति एवं धर्मक्रांति को मूर्तरुप देने वाले स्थानक्वासी सरम्परा के आदि पुरुष ये-श्री घमेदास जी महाराज । श्री धर्मदास जी म० अपने युग के समर्थ विद्वान, त्ियोद्धारक एवं तेजस्वी धर्म प्रचारक संत थे । वि० स० १०३७२ में आपका स्वर्ग- चास हुआ 1




User Reviews

  • Jain Sanjeev

    at 2019-09-11 08:51:40
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "Jay Guru Jaymal"
    Jay guru madhukar
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