दासबोध | Dasabodh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
567
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं. माधवराव सप्रे - Pt. Madhavrao Sapre
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्ररता[वना व थ
श्रीराम से मंत्रोपदेश ओर आज्ञा पाकर वाल समर्थ को परम सन्तोप हुआ । उनकी माता
और वन्घु को जव यह हाल मालम हुआ तब वे अदन्त हृर्षित हुए ।
विवाद-प्रसंग ।
जिस प्रकार माता अपने पुत्त के लिए अनेक उत्साह की इच्छायें रखती है उसी प्रकार
वह एक यह भी प्रवल इच्छा रखती ह कि लड़के का विवाह शीघ्र होजाना चाहए | इसी
नियम के अनुसार समर्थ की माता राणुवाई भी अपने पुत्र नारायण ( वाल समथ ) के
विवाद की चिन्ता करने लगीं । विवाह की वातें सुन कर नारायणजी बहुत चिढ़ते आर नाना
प्रकार से विरक्ति व्यक्त करते थे । एक थार विवाह की चचां छिड़ने पर वे घर से भाग कर
जंगल में चले गये । उनके ज्येष्ठ बन्घु श्रेष्ठ वहुत समझा घुझाकर उन्हें घर ले आये ।
उनकी यह चाल देख कर माता राणुवाई को वड़ी चिन्ता हुई । श्रेष्ठ अपने कनिष्ठ वन्धु
नारायण की विरक्ति देख कर पहले ही समझ गये थे कि यह विवाह नहां करना चाहता ।
उन्होंन अपनी माता को बहुत प्रकार से समझाया; पर वे वार वार यह कहतां हक नारायण
का विवाह अवइ्य होना चाहिए । अवसर पाकर एक दिन माता राणुवाइ अपने नारायण
को एकान्त स्थान में ले गई और मुख पर हाथ फेर कर, वड़े लाइ-प्यार से वोलीं, “ वेटा '”
तू मेरा कहना मानता है या नहीं ? ” वालक समर्थ ने उत्तर दिया, ** मातुभी, इसके लिए
क्या पूछना है? आपका कहना न मानेंगे तो मानेंग किसका १ कहा भी है, * न माठुः पर
देवतम, ” यह सुन कर माता राणुवाई वोलों, “ अच्छा तो विवाह को वात चलने पर तू.
ऐसा पागरूपन क्यों करता हे तुझे मेरी शपथ हे; “ अन्तरपट ” पकड़ने तक तू. विवाह के
लिए इन्क,र न करना । ” माता को यह वात सुन कर समथ व विचार में पड़े । कुछ देर
तक सोच विचार कर उन्होंने उत्तर दिया, “* अच्छा, अन्तरपट पकड़न तक म इन्कार न
करूँ गा । ” शोली भाली विचारी साता ! समर्थ के दाँव-पेंच उसे केसे मातम होते ! राणु-
वाई ने समझ लिया कि लड़का विवाह करने के लिए तेयार होगया । उन्होंने जब यह वात
अपने बड़े पुत्र श्रेष्ठ से बतलाई तब वे कुछ हँसे ओर प्रकट में सिफू इतना ही कहा;
““्क्योंनहों!”'
' जब देखा गया कि लड़का विवाह करने के लिए राजी है तव सबकी सम्मति से एक
कुठीन और प्राचीन सम्बन्धी कुल की कन्या से विवाह निश्चित किया गया । लमतिथि के
दिन श्रेष्ठ सारी वरात लेकर, वड़ी धूम घास के साथ कन्या के पिता के यहाँ पहुंचे । सबके
साथ समर्थ भी आनन्दपूरवक गये । सीमन्तपूजन, पुण्याहवाचन आदि ल्नविधि होते समय
श्रेष्ठ और समर्थ, दोनों भाई, आपस में एक दूसरे की ओर देख कर, मन्द मन्द हँसते जाते
थे | कुछ समय के वाद अन्तरपट पकड़ने का अवसर आया । ब्राह्मणों ने मगलाप्रक पढ़ना
प्रारम्भ किया । सब ब्राह्मण एक साथ ही ” सावधान ” बोले । समथ ने सोचा कि में
सदा सदा सावधान रहता हूँ; फिर थे लोग ” सावधान, सावधान ” कहते ही हैं; इस-
बन
User Reviews
No Reviews | Add Yours...