अतीत के उज्ज्वल चरित्र | Atit Ke Ujjval Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भगयान महावीर द
कशान्त स्थान में रह कर वीतराग भाव की साधना करते
रहे । उस समय उन्होंने शरीर पर किचितुमात्र भी मोह
नहीं किया । क्या गर्मी, क्या सर्दी और क्या वर्पा सभी
समय उनका साधना दीप जलता रहा । साढे बारह वर्षो
में उन्हें भयंकर कष्टो का सामना करना पडा । ग्रामीण
लोग बडी निर्दयता के साथ पेन आते थे । ताडन, तर्जन
भौर उत्पीडन प्रतिदिन की बात थी । लाढ देवा में आपको
कुत्तो से भी नुचवा डाला था । किन्तु आप सदा शान्त
और मौन रहे । विरोधी से विरोधी व्यक्ति के प्रतिं भी
आपके मन से प्रेस का करना वहता था । उन्होने
नागराज चण्डकौशिक का भी उद्धार किया वह प्रसंग
इस प्रकार है--
भगवान् प्रथम वर्षावास समाप्त कर इवेताम्बी नगरी
की भोर जा रहे थे । चारो भौर प्राकृतिक सौन्दर्य-सुषमा
विखरी हुई थी । भगवान के तपस्तेज से दंदीप्यमान
देह की निर्मल आभा से वन प्रदेश और भी अधिक सुन्दर'
हो रहा था । भगवावु महावीर आत्मा की मस्ती में भूमते
हुए आगे वढ रहे थे ।
मार्ग मे कुछ ग्वाल वाल मिले, उन्होंने भगवानु से
नगर निवेदन किया--आप इघर न जाइए ! इधर कुछ दूर
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