अतीत के उज्ज्वल चरित्र | Atit Ke Ujjval Charitra

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Atit Ke Ujjval Charitra by देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri

Add Infomation AboutDevendra Muni Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भगयान महावीर द कशान्त स्थान में रह कर वीतराग भाव की साधना करते रहे । उस समय उन्होंने शरीर पर किचितुमात्र भी मोह नहीं किया । क्या गर्मी, क्या सर्दी और क्या वर्पा सभी समय उनका साधना दीप जलता रहा । साढे बारह वर्षो में उन्हें भयंकर कष्टो का सामना करना पडा । ग्रामीण लोग बडी निर्दयता के साथ पेन आते थे । ताडन, तर्जन भौर उत्पीडन प्रतिदिन की बात थी । लाढ देवा में आपको कुत्तो से भी नुचवा डाला था । किन्तु आप सदा शान्त और मौन रहे । विरोधी से विरोधी व्यक्ति के प्रतिं भी आपके मन से प्रेस का करना वहता था । उन्होने नागराज चण्डकौशिक का भी उद्धार किया वह प्रसंग इस प्रकार है-- भगवान्‌ प्रथम वर्षावास समाप्त कर इवेताम्बी नगरी की भोर जा रहे थे । चारो भौर प्राकृतिक सौन्दर्य-सुषमा विखरी हुई थी । भगवान के तपस्तेज से दंदीप्यमान देह की निर्मल आभा से वन प्रदेश और भी अधिक सुन्दर' हो रहा था । भगवावु महावीर आत्मा की मस्ती में भूमते हुए आगे वढ रहे थे । मार्ग मे कुछ ग्वाल वाल मिले, उन्होंने भगवानु से नगर निवेदन किया--आप इघर न जाइए ! इधर कुछ दूर




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now