वद्धमाण चारीउ | Vaddhaman Chariu

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Vaddhaman Chariu  by राजाराम जैन - Rajaram Jain

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प्राकृत- पाली- अपभ्रंश- संस्कृत के प्रतिष्ठित विद्वान प्रोफ़ेसर राजाराम जैन अमूल्य और दुर्लभ पांडुलिपियों में निहित गौरवशाली प्राचीन भारतीय साहित्य को पुनर्जीवित और परिभाषित करने में सहायक रहे हैं। उन्होंने प्राचीन भारतीय साहित्य के पुराने गौरव को पुनः प्राप्त करने, शोध करने, संपादित करने, अनुवाद करने और प्रकाशित करने के लिए लगातार पांच दशकों से अधिक समय बिताया। उन्होंने कई शोध पत्रिकाओं के संपादन / अनुवाद का उल्लेख करने के लिए 35 पुस्तकें और अपभ्रंश, प्राकृत, शौरसेनी और जैनशास्त्र पर 250 से अधिक शोध लेख प्रकाशित करने का गौरव प्राप्त किया है। साहित्य, आयुर्वेद, चिकित्सा, इतिहास, धर्मशास्त्र, अर

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 बडुमायचरिय १०, उत्सव एवं क्रोड़ाएँ १ ११, शोज्य एवं पेय पदार्थ पं १२. आमूषण एवं वस्त्र पे १३. वाद्य और संगीत ५५ १४, लोककर्म १५ १५, रोग और उपचार ५६ १६. कृषि (ठट्राएं००1६०१७), मवन-निर्माण (पत1फग्रटट-ए०89ए ०0), प्राणि-बिद्या ( 20०1० ) तथा भूगर्भ विद्या ( 06०1०; ) सम्बन्धी यस्त्र ( हद 2.८पिं०९४ ) एवं विज्ञान पं १७, राजनैतिक सामग्री ५७ १८. युद्ध-अणाली ५९ १९, शस्त्रास्त्र, युद्-विद्याएं ओर सिद्धियाँ धरे २०, दर्दान और सम्प्रदाय रे २१, सिद्धान्त और आचार द्् २२. भूगोक द्भु (१) प्राकृतिक भूगोल द्ण्‌ (२) मानवीय भूगोल दा (३) आधिक सुगोल ८ (४) राजनैतिक भूगोल ८ २३. कुछ ऐतिहासिक तथ्य ध८ (१) इल गोत्र ६९ (२) मृतक योद्धाओंकी सुचियाँ दर (३) दिल्‍्लीका पूर्व नाम “'ढिल्‍्ठी क्यों ? ७० (४) राजा भनंगपाल और इम्मीर वीर रे २४, कुछ उद्देगजनक स्थल ७२ २५. हस्तलिखित प्रत्थोंके सम्पादनकी कठिनाइयाँ तथा भारतीय शानपीठके स्तुस्य-कार्य ७रे २६. कृतशता-ज्ञापन छह विषयानुकम : मूलग्रन्थ ७५-द मुलग्रत्थ तथा हिन्दी अनुवाद सर १--२७९, परिशिष्ट सं. १ [ क, ख, ग ]--विवुष थीघरकी कृतियोंके कुछ ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिसि महत्त्वपूर्ण प्रशस्ति अंश «.. ... रेठर-रे० परिशिष्ट सं. २ [ क, ख़ ]--१०वींसे १७वों सदीके प्रमुख महावीर चरितोंकि धटनाक्रमों और भवावलियोंकी निन्नाभिघ्नता तथा वैशिष्ट्य सूचक मानचित्र ३०३-३०४ दाब्दादुकमणिका ३०५-र५८




User Reviews

  • Ishita

    at 2020-01-14 07:39:26
    Rated : 10 out of 10 stars.
    "A great masterpiece of ancient India - the first independent Apabhramsha work!!"
    (12th century AD, Apabhramsha): A great masterpiece of ancient India, deeply touched the literature, art and culture. The first independent Apabhramsha work of the 12th century on the life of Lord Mahāvīra. A critical edition and annotation of rare unpublished manuscript for the first time - a unique work with exhaustive introduction, rich in information & methodical presentation.
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