विनय पिटक | Vinaya Pitaka

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Vinaya Pitaka by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2: विनय-पिटक व्‌ द्ध च या के प्राककथनमें मैंने लिखा था-- 'इस पुस्तकमें कुछ जगह एक ही घटनाको अ टूठ कथा. विनय, और सूत्र तीनोंके दाब्दोंमें दिया है, उसके देखनेसे मालूम होगा, कि सूत्रों की अपेक्षा वि न य में अधिक अतिथयोक्ति और अलौकिकतासे काम लिया गया है; और अ ट्ठ क था तो इस बातमें विनयसे . बहुत आगे बढ़ी हुई हैं। और इसीलिये इसके ही अनुसार इनकी प्रामाणिकताका तारतम्य मान लेनेसे कोई हानि नहीं है।” इस प्रकार प्रामाणिकतामें विनय-पिटक सुत्त-पिटकसे दूसरे नंबरपर है। विनय- पिटकमें भी प रि वा र के पीछे लिखे जानेकी बात में पहिले कह चुका हूँ। वि भंग और ख़न्धक में विभंग तो पातिमोवख-सुत्तॉपर व्याख्या मात्र है, इस व्याख्यामें भी ष डू वर्गी य भिक्षुओंके नामकी बहुत सी नजीरें तो सिफ॑ उन अपराधोंका उदाहरण देनें मात्रके लिये गढ़ी गई जान पढती हैं । यद्यपि ऐसी नजी रें _ खन्ध क में भी पाईजाती हैं, किन्तु वहाँ उनकी संख्या अपेक्षाकृत कम है । इस प्रकार विनयर-पिटक का सबसे अधिक प्रामाणिक अंग भिक्षु-भिक्षुणी-प्रातिमोक्ष (० पातिमोक्ख) है, फिर खन्धकका नंबर आता . हैं; और वि भ॑ ग उसके बाद । खन्धक में भी पातिमोक्खमें आये, पा रा जि का से खि य आदिकें कितने ही नियम फिरसे दुहटराये गये हैं । खत्थकके स हा व रग, चु लल व र्ग पहिले एक ही ग्रस्थकें रूपमें थे, जैसे कि वह मूल सर्वास्तिवादियोंकें महावस्तुमें मिलते हूं, सिफ॑ पंच दाति का और सप्तशति का जैसे कुछ अध्याय पीछेके जोछे हैं। बुद्धके सम्बन्धमें खन्ध क में बृद्धके जीवनके कितने ही अंश ही नहीं आते, बल्कि कहीं कहीं तो भगवानुके एक स्थानसे दूसरे स्थान, वहाँसे तीसरे स्थान--इस प्रकार छ छ सात सात स्थानों तककी यात्राका वर्णन आता है। किन्तु इन यात्राओंकों सीधे तौरपर जीवनके लिये इस्तेमाल नहीं किया जाता, क्योंकि कितनी दी जगह बुद्धके जीवनके बहुत पीछेकी घटनायें नज़ीर देनेके लिये पहिले रख दी गई हैं *; और दसरे प्रत्येक स्कंघकका विनय अलग होनेसे वहाँ यात्राका क्रम टूटा हुआ है। तो भी उनसे सहायता अवच्य मिल सकती हैँ । विनय पिटेककी उपयोगिता विनय-पिटक भिक्षुओंकें आचार नियमोंके जाननेके लिये तो उपयोगी है ही, साथ ही व पुराने अभिलेखों तथा फाहियान, इ-चिड आदिके यात्रा विवरणोंको समझनेके लिये भी बहत सहायक ) यही नहीं विनयमें तत्काछीन राजनैतिक, सामाजिक अवस्थाकी सूचक बहुत सी सामग्री मिलती है। यदि _. चावर-स्कध कक, चम-स्कंघक और भिक्षुणी वि भंग में आयें वस्त्र-आभषण आदिके नामोंको . साँ ची की मूर्तियोंसे मिलाकर पढ़ें, तो हम उत्तरी भारतकें स्त्री पुरुषोंकी तत्कालीन वेष-भषाका बहतसा ज्ञान पा सकते हैं । शमथ-स्कंघकमें आई था ला का ग्रहणकी प्रक्रिया तो वस्तुतं: समकालीन लिच्छवि ... गणतंत्रके वोट लेने आदिकी प्रक्रियाकी नकल मात्र है । आजकल भी हमारी कौंसिलोंमें किसी प्रस्तावको : पद करन, बहस करन, अन्तम सभापति द्वारा सम्मति लेनेके खास नियम हैं । विनय-पिटकके देखनेसे ..... मालूम होगा कि भिक्षु-संघ (जो कि वस्तुतः उस समयके गणतंत्रोंकी नकल थी )में भी प्रस्ताव पेथ ... करते वक्‍त एक खास आकारमें पेश किया जाता था, जिसे ज्ञ प्ति कहते थे । ज्ञप्तिके बाद सदस्योँको नसकररसपववकपपपएसफिपसिफटपिपएफसपटट-एडपटपक्यथ न, .. 'सहावग्ग १६४८ (पृष्ठ १३५) *देखो पृष्ठ २८९ में पाटलिग्रामकी बात ।




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