गाँधीवादी संयोजन के सिद्धान्त | Gandhivadi Sanyojan Ke Siddhant

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Book Image : गाँधीवादी संयोजन के सिद्धान्त - Gandhivadi Sanyojan Ke Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गांधीवादी संयोजन के सिंद्धान्त खण्ड १ गाँधीवादी योजना हु. खले व्यापार की नीति के श्रत के साथ ही प्रत्येक देश मे श्राथिक सयोजन का महत्व एकदम बढ गया है । प्रथम महायुद्ध के पहले मजदूरों की सेवा, मकानों की कमी श्रौर बेकारी को मिटाने जैसे राष्ट्रीय जीवन के बहुत थोडे गो के वारे मे सयोजन की पद्धति पर सोचा जाता था, परन्तु उसके वाद तो सयोजन का विचार बहुत फैल गया । राष्ट्रीय जीवन के लग- भग हर पहलू का सयोजन शुरू हो गया। सोवियत रूस की पचवर्षीय योजना इस प्रकार का सबसे पहला प्रयास था । फिर तो यह विचार वढा भ्रौर देखते-देखते सारे ससार मे फैल गया । ससार मे छाई हुई बेहद मदी से भ्रपने देश को बचाने के लिए राष्ट्पति रूजवेल्ट ने अमरीका मे '्यूडील' (नया सौदा) का प्रारम्भ किया। जर्मनी में हिटलर ने श्रपने देश को मुख्यत दूसरे महायुद्ध के लिए तैयार करने के लिए चार वर्ष की योजना जारी की । इग्लेड की चाल जरा धीमी रही । उसने भी सयोजन शुरू किया, परन्तु खण्डो मे--एक-एक क्षेत्र मे--श्और इसीमे सन्तोष मान लिया । फिर भी सामाजिक सुरक्षा की “बीवरेज योजना' इस दिशा में उनका एक व्यवस्थित प्रयास था । भारत मे पष्चिम की पद्धति पर सयोजन का प्रयत्न करनेवाले सबसे पहले व्यक्ति थे सर एम विश्वेव्वरय्या । परन्तु भारत के श्रार्थिक विकास की व्यवस्थित भ्रौर व्यापक योजना का तफसीलवार मसबिदा बनाने का यलत भारत की राष्ट्रीय महासभा (कांग्रेस) द्वारा नियुक्त राष्ट्रीय सयो- जन समिति ने किया । दुर्भाग्यवश वह अपना काम पूरा नहीं कर सकी ।




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