विज्ञान परिषद का मुखपत्र | Vigyan Parishad Ka Mukhpatra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
139 MB
कुल पष्ठ :
573
श्रेणी :
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No Information available about गोपाल स्वरुप भार्गव - Gopal Swaroop Bhargav
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संख्या १ ]
ढंगसे इस प्रश्नपर विचार कर तो कुछ चुस नहीं
है ।. दम मानते हैं कि झन्तिम्र निश्चय करते समय
सप्ीय झोर झन्प प्रान्ताक दृष्टि केखोपर ध्यान
रखते हु कांय कर ना उचित श्र घाव श्य क होगा ।
परन्तु दम झभी केवल दिन्दो भाषा का प्रबल
श्तोर योग्य बनानेका उद्योग करना चाहिये । यदि
इमसारी भाधामें. वेज्ञनिक साहित्य प्रचुरतासे
अौर पूर्ण रीतिसे दोगा लो झन्य भारतीय भाषाएं
भी ( उदूका छोड़कर ) 'अवश्य हिन्दी से अनुवाद
रंगी झौर दिन्ही में निमाण किये इृपए शब्द प्रयाग
करनी । जैसे हज़ारों शब्द बंगला श्रौर मराठीसे
एस खमय हिन्दीमें लिये जा रहे हैं. ऐसे ही दिन्दों
वैज्ञानिक शब्द झन्य भाषाओका दे सकती है ।
हिन्दी राष्ट्रभाषा होनेंसे अन्य भारतीय साषाशों-
पर धड़ा प्रभाव डाल सकेगी । पर हमें हिन्दीका
योग्य बना सेना चाहिये । इस समय भी जितना
सेज्ञानिक साहित्य हिन्दी भाषामें है उतना किस्ती
शारतीय माषामें नहीं है । 'विज्ञान' जे ला पूर्ण वैज्ञा-
निक पत्र किसी भारतीय भाषामें नहीं है। यदि
हिन्दी +साषा-साषी विज्ञान बेता सद्दोदय झपनी
साषामे लिखनेका काय्य छारम्स कर दें लो केवल
'चांच वर्षोंमें ही समस्या हल हा जाय । विज्ञान
परिषत्कों यदि सददयोग मिले लो उच्च कोरटिकी
वैज्ञानिक पुस्तक शीघ्र प्रकाशित क्र दे । कार्श
नगरी 'प्रचारिणीस भा के वैज्ञानिक कोषने भारतीय
सब शाषाउोके ऊपर प्रथ।व डाला है। झब यदि
कक 'सखर्वाज-पूणा कोष विज्ञान-परिषत् प्रकाशित
कर दे तो 'विज्ञान' में प्रयुक्त हज़ारों वैज्ञानिक शब्द
लेखक-मयडली के सामने उपस्थित दो जायें । यह
कोष झन्य भारतीय भाषाइोके लेखकों का खद्दा-
यता पहुँचाबेगा झौर इस प्रकार भारतीय शाषाश्रों -
के वैज्ञानिक 'शब्दोम एकरूपताका बड़ा प्रबल
कारण 'झोर साधन हो सकेगा । पर वैज्ञानिक कोष-
सु रुपपक्ता ख़चं है आर फंरिषत्की
आर्थिक अवस्था इस येस्य नहीं कितने खचेक्रा
बोभा. झपने अपर इठा सके । दो तीन ब्ष हुआ
लव लकिदलीग, विकास लपललसललीकी गिल
देशी भाषाश्रो में वैज्ञानिक साहित्य श्दे
हिन्दी-साहित्य-सम्मेलनक चाबिक अधिवेश
वैज्ञानिक कोष निर्माण सम्बन्धी शक्त घस्ताव
स्वीकृत डुश्रा था प्र सम्मेखनधी 'झाधिक स्थिति
पेसी न थी कि इस सम्पन्थम कुछ करे ।...
_ हमारी राय है कि हृस हिन्दी शाबियों:
दीको वैज्ञानिक भाषा बना देना चादिये. शोर
इतना वैज्ञानिक सादित्य पुस्तकाकार. छुत्प देना
चाहिये कि भारतोय भाषाएं इम्परी “आपषासे
सद्दारा लेने ल्रगे । रद्दी उदूकी बात, से उरूं और
हिन्दी हैं तो पक दी भाषा । पर दमें. चाहिये कि
अपने मुसलमान भाइयों का उद्की गति 'निश्वीं
रित करनेकी. पूर्ण स्वतन्त्रता देदें ।. चढ़ 'डदूश्स
जैसी चाहें बनाये, दमें उनकी इच्छा की पूर्ति
में कोई बाघा व उपस्थित करनो चाहिये . बेंगल
गुजराती, मराठी, तामिल तेलयू. छोर .डिंन्दीके
लेखक डारबी श्रौर तुर्की भाषाशौसे शब्द उदार
लेनेमें झसमथ हैं शोर खदा शसमथ रदेंगे, साथ
दो उदूं लेखक श्रवी भाषासे शब्दौका उधार
लेना झपना धार्मिक कर््ततप खमभते हैं । इख
संकट को सुलभाना अभी ते खम्मव सद्दीं माद्धूम
होता, न दमारे पास ऋतनी शक्ति है । जा ज़स खो
कारय्य 'करनेकी शक्ति हममें है वह इसमें 'झापने
सादहित्यके .निसोणमं लगा देनी चाहिए काम
करना हमारा क्त्तंव्य है फल, इंश्चरके हाथ ,
सारल-माग्य-विधाता सगवान भारतब्रप्रका संपल्
करोगे ही, हमें भारतका करुणामय 'भगवानकी
कऋरुणा श्र प्रेमके योग्य बन्नानेका तिरस्तर उद्योग
करना चाहिये, बस ।
_[ ले०--श्री फूनदेवसदाय वर्मा, एम, ए., बी. पस-रसी,.
और ररेल और कालेजोमे शिक्षा का ।साध्द्रस
0 त श देशी साषपाय दी इस व तु
कं... ह मलमेंद्र नहीं “रह गया है । सभी
बगल स्वीकार करते हैं कि सामव-
शक्तिक्े पूणण-घिकासमें, विदेशी भाव हारा शिक्ा-
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