मूक माटी चेतना के स्वर | Muk Mati Chetana Ke Swar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Muk Mati Chetana Ke Swar  by भागचन्द्र जैन भास्कर - Bhagchandra Jain Bhaskar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भागचन्द्र जैन भास्कर - Bhagchandra Jain Bhaskar

Add Infomation AboutBhagchandra Jain Bhaskar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
द ३०७)। निरज्जनसतक में झुटि-बिम्ब से निसृत शीतलता से भी अधिक आल्हादकारी माना है (पच्च ७९), और श्रमणशतक में उसे अलौकिक आनन्ददायक चित्रित किया है (पद्य २६)। ये झतक मात्र आध्यात्मरस के ही आवाहक नहीं है बल्कि इनमें यमक, इलेष, रूपक, उपमा, उपेक्षा, विशेषोक्ति, विरोधाभास, आदि जैसे विशिष्ट अलकारों का प्रयोगकर विषय को अधिक गम्भीर और प्रभावक बना दिया है। इसके बाबजूद कही भी भाषा बोझिल नहीं हो पायी है । कल्पनाओं की अनूठी दौड में प्रसाद गुण सदैव साथ रहा है। २) अनुदित साहित्य. आचार्वश्री एक कुशल काव्यानुवादक हैं। कुशल अनुवादक होना सरल नही है। मूल लेखक के भावों को तह तक पहुचकर समरसता पूर्वक उसके दब्दो को अपने चाब्दों में अनुकृत करना सफल अनुवादक की पहिंचान है। पाठक को ऐसे अनुवाद में यह आभास नहीं हो पाता कि वह अनुवाद पढ रहा है। आचार्यश्री ने यह सिद्ध-हस्तता प्राप्त कर ली है। उनकें पच्चानुवादों में उल्लेखनीय हैं - इष्टोपदेश (बसततिलका एवं ज्ञानोदय छन्द में अलग-अलग) गोभटेश थुदि, द्रव्यसंग्रह (वसत तिलका एव ज्ञानोदय छन्द में अलग-अलग) योगसार, समाधि-तन्ज्र, एक्लीभाव स्तोत्र (मन्दाक्रान्ता छन्द में), कल्याणमन्द्रि स्तोत्र (वसततिलका छद में), देवागम स्तोत्र, पाञकेशरी स्तोत्र (जिनेन्द्र-स्तुति), वृहदू स्वयंभूस्तोत्र-समन्तभद्ध की भद्रता (श्ञानोदय छन्द में), रत्नकरण्ड श्रावकाचार- (रयण मज्जूबा), समण सुत्तमू( जैन गीता, घसन्ततिलका छन्द में), समयसार कलश (निजापृत पान), आत्मानुशासन (गुणोदय- ज्ञानोदय छन्द में), अष्टपाहुड, हादश- अनुप्रेकषा, नियमसार, प्रवचनसार, समयसार (कुन्दकुन्द का कुम्दन), (वसततिलका छन्द में), पब्चास्तिकय (सस्कृत तथा हिन्दी में) नन्दीइवर भक्ति (ज्ञानोदय छन्द में), आदि। ये अनुवाद कहीं शब्दश. हैं और कहीं भावात्मक हैं। दोनों स्थितियों में शब्दों के चयन और उनके सयोजन ने हर अनुवाद को एक नया आयाम दिया है और उसमें पूल भावों की प्राण-प्रतिष्ठा की है। उदाहरणार्थ :-- जैनगीता *समण सुत्तपू ' का अनुवाद है। आचार्य विनोबा भावे की प्रेरणा से जैनों का यह सर्वपान्य ग्रन्थ तैयार होकर से सेवा सघ से १९७५ ई में प्रकाशित हुआ था । इसमें ७५६ गाधायें हैं जो चार खण्डों में विधक्त हैं-ज्योतिर्मुख, मोक्षमार्ग, तत्वदर्शन और स्याद्वादा आचार्य श्री ने इन गाधाओं का अनुवाद बेसन्ततिलका ्




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now