यशोधरचरितम् | Yoshodharacharitam

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Yoshodharacharitam by भागचन्द्र जैन भास्कर - Bhagchandra Jain Bhaskar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ उपदेश देने के लिए संब श्रमण करते रहते है ।ই गाँव प्राकृतिक कृष्टि से रभणीकं है । दुगे, पर्वत, उश्यनि भादि ते उनकी शोभा द्विगुणित हो गयी है। ग्रामो के बाह्योद्यान मुनिराजो के चरित्र के समान हृदयहारी, तापहारक, तृप्तिकारक और सन्‍्तोषदायक हैं। यंहाँ के सरोवर मुनिराजों के प्रशान्त हृदय के समान सयमित और पिपासा के ছান্ত करते वाले हैं। यहाँ के खेत साधुओ के घडढाव- श्यको के समान हैं जो यथासमय महाफल देते रहते हैं। इस देश के लोग बडे सभ्य है, सुसंस्कृत और धर्मात्मा हैं। वे कठोर तप कर मोक्ष की साधना करते हैं। कोई मोक्ष चला जाता है और कोर सर्वार्थसिद्धि, नवग्रैवेयकष णा स्वगे मे उत्पन्न हो जाता है। कतिपय धामिक उत्तम दान के प्रभाव से योगभूमि मे सत्कुलों और सम्पन्न परिवारो मे जन्म लेते हैँ (१०-१८) । उस यौधेय देश के बीच मे राजपुर नाम का प्रसिद्ध नगर है , जो राजलक्षणो का अद्वितोय स्थान है, विशाल खाई से तथा ऊँचे-ऊंचे परकोटा और नगर के दरवाजे से शोभायमान है; महलो के अग्रभाग में लगी हुई पताकाओ की पक्तियो से तथा विशाल जैन मन्दिरो के महाकूटो के अग्रभाग मे स्थित ध्वजारूपी करो से मानो पुण्य और वैभवशाली देवो को बुला रहा है । वहाँ तीन तरह के लोग बसते है । कोई सम्यग्दष्टि सदाचारी हैं, कोई नाम मात्र से जैन कहलाते हैं और कोई अन्य मतावलबी हैं। जैन मन्दिर जाने वाली वहाँ की ललनाये इस प्रकार शोभायमान होनी हैं मानो हाव-भावों से शोभायमान देवांगनायें हो । ये जैनमन्दिर गीतो से, वाद्यों से, स्तुतियो से, स्तोच्नी से, जय-जय की धोषणाओं से और अन्य विविधताओ से इस प्रकार शोभायमान होते है मानो जन-समुदायों से परिपूर्ण दूसरे धर्म के सागर हो। इस नगर में दानी निरतर पात्रों को दान देने पर सत्पात्र की प्रतीक्षा करते है और उनके आने पर विशुद्ध मन से मुक्त हस्त से दान देते हैं। कोई जैन उत्तम पात्रो को दान देने से उत्पल्त रत्तवृष्टि को देखकर पुण्यबथ्र करते हैं। और दूसरे पात्र दान के प्रति सदभाव व्यक्त करते हैं। यह नगर ज्ञानी, भोगी, त्यागी और ब्रती गृहस्थ तथा पातिब्रतादि गुणो से अलकृत महिलाओं से सुशोभित है। यहाँ के कोई-कोई भव्य आत्मा दुर्धर तपो के प्रभाव से मोक्ष प्राप्त करते हैं और कोई ब्रतधारी मनुष्य ग्रेवेयक विमानो गौर स्वगो मे जाते ह (१६-२८) इस वैभवशाली राजपुर नगर में मारिदत्त नाम का राजा था जो शत्रुविजेता, हूपवान, प्रतापशाली, दाता, भोक्ता, विविध कलाओं मे पारायण, शुभ लक्षण सम्पन्न, बैभवशाली, विशाल परिवारवाला बौर धीर वीरथा । दोष यह था कि वह राजा धमं ओर विवेक से रहित था, पापी भौर अविवेकीजनों से घिरा रहता




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