चतु शतकम | Chatu Shatkam

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Chatu Shatkam  by भागचन्द्र जैन भास्कर - Bhagchandra Jain Bhaskar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(६) ६. महावर. चलन चर, पातिमोक्ख { २२७. नियमों का पर्णं होना }» विमासकस्यु, पेतबत्थू, घम्मंपद, केंथावत्यु ७, श्रल्लनिद स, महानिह स, उदान, इतिवुत्तक, सुत्तनिपात, घातुकथा, यमक, टन * ¢, बुद्व॑स, चरियापिटक, भपदान €, परिवारपाठ १०, खुददक पाठ पिटकेतर साहित्य में अट्रुकुधा सहिंत्य, टीका साहित्य, टिप्पणियां भथवा अनुटीकाये भौर प्रकरण { संग्रह, वेस, व्याकरण, काव्य, कोश ) प्रमुख हैं । इनमें बुद्धघोष, घम्मपाल, कस्चायन, मोग्गलायन, बुद्धरक्खित श्रादि विद्वान पालि साहित्य के क्षेत्र में भ्रघिक लोकाप्रिय हुए हैं । भ्रमी हमने पालि साहित्य कौ एक भ्रत्यन्त संक्षिप्त रूपरेखा श्रापके समक्ष प्रस्तुत की है। उससे इतनी तो जानकारी होती ही है कि पालि भाषा में निषद्ध साहित्म मात्र तिपिटक नही, प्रत्युत संस्कृत माषा मे रचित साहित्य जैसा उसमे वेविध्य मी उपलब्ध होता है । भ्राज भौ पालि भाषा साहित्य-सजनसे बाहर नहीं हुई है । शोधकों श्रौर लेखकों के लिए इस साहित्य में प्रचुर सामग्री मिल सकती है । मध्यकालीन श्रार्यभावाग्रों का भ्रध्ययन परणं करने कै लिए पालि माषाका बज्ञानिक झव्ययन भ्रत्यावश्यक है । उसने न केवल झाधुनिक भारतीय भाषाओं को प्रभावित किया है, प्रत्युत सिंहल, वर्मा, थाईलैन्ड, चौत, जापान, तिब्बत, मंगोलिया भ्रादि देशों की भाषामों के विकास में भी उसका पर्याप्त योगदान हैं । दार्शनिक हृष्टिकोण से श्रध्ययन करनेवालो को इसमें दर्शन की भी विपुल सामग्री मिलती है । स्थविरव,द प्रौर भ्रन्य बौद्ध सम्प्रद।यों के श्रतिरिक्त बदिक झौर जैन दर्शनों का भी इसमें प्रसंगतः पर्या विवेचन हा है जो उनके इतिहास के परिप्रेक्ष्य में झत्यन्त महत्वपूर्ण है। प्राचीन ऐतिहासिक श्ौर सॉस्कृतिक सामग्री के लिए तो पालि साहित्य एक भरजस स्रोत है । श्रट्ुकथायें जो झभी तक समूवे रूप में नागरी लिपि में भरप्रकाशित हैं, बिलकुल झ्रछूती-सी पड़ी है + प्राचोन इतिहास के कालक्रम को निश्चित करने मं पालि साहित्य सर्वाधिक सहाथक सिद्ध हभ है। जैन सांस्कृतिक इतिहास के विकास कौ जानकारी क लिए तो पालि साहित्य सदव झ्रविस्मररणीय रहेगा ।* म १, इसके लिए देखिये, सेखक क प्रन्थ ““जनिज्म इन जुद्धिस्ट लिटरेचर” ।




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