भारतीय दर्शन परिचय भाग - 1 | Bharatiya Darshan Parichay Pratham Khand - 1
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
45.25 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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No Information available about प्रो. श्री हरिमोहन झा - Prof. Shri Harimohan JHa
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२ स्यायन्द्शन साधन वा प्रमाण है पव॑त पर घुझाँ दिखलाई पढ़ना । यद हेतु है । घुन्माँ झग्नि के अस्तित्व का सूचक चिह्न क्यों है ? इसीलिये कि सर्वत्र घु्प का सम्बन्ध झाग के साथ पाया जाता है जैसे रसोईघर में । यह उदाहरण है । रसोईघर की तरह पहाड़ पर भी चघुभ्माँ पाया जाता है । यह उपनय है । इसलिये पहाड़ पर भी झाग होगी । यद निगमन या निष्कर्ष है। -. उपयुक्त पाँचों झवयव १ प्रतिज्ञा २ हेतु ३ उदाइरण ४ उपनय ५ निगमन मिलकर प्रतिपाद्य विषय को सिद्ध करने में समर्थ होते हैं । इन्हीं पंचावयवों से युक्त वाक्यसमूद को. न्याय अथवा न्याय प्रयोग कद्ते हे । वात्स्यायन कहते हैं साधनीयस्यार्य यावति शब्दससूहे लिखिर परिसमाप्यते ते पंचावयवोपरेतवाक्यात्मकों स्याय शर्थात् साध्य विषय की सिद्धि के देतु जो शावश्यक अवयवस्वकूप पंचबाफय हैं उत्का समूह ही न्याय है। प्रतिशा हेतु झादि झषयव न्यायावयव कहलाते हैं। सम्पूर्ण व्याय- प्रयोग का फलिंताय वा दिखोड़ है झत्तिम निममन । झातणव बह परमन्याय भदकाता है उपयुक्त पंचावयव अनुमान के झड हैं। दूसरों के समक्ष प्रतिपाध विषय को रथापित करने के लिये ही इन फांचों महावाक्ों का सहारा लेना पड़ता है । शतः इनके प्रयोग को परायाजुमान कहते हैं। इस करह स्यस्य शब्द से परारधाचुमान का प्रदण होता है। झतः माधवायाय सद््शन- संग्रह में न्याय को परार्थाचुमान का झापर पर्याय बतलाते हैं । यदि सूद्म दृष्टि से देखा जाय तो न्याय झथवा चराधाजुमान में सभी प्रमाकों का संघटन हो जाता है। प्रतिज्ञा में शब्द हेतु में शन्मान उदादरण में प्रत्यक्ष श्र उपभय मैं उपमान इस प्रकार समी प्रमाथ सा जाते हैं। इन सबों के योग से ही निगमन वा फलिताध निकलता है । झतएब न्यायकासिक में कहा गया है-- समस्तश्रमाणव्यापारादर्धाधिगतिन्याँय टच समस्त प्रमाण के ब्यापार के द्वारा किसी निष्कर्ष था फल की प्राप्ति शोना दी न्याय है । इस प्रकार न्याय शब्द की ब्याप्ति उन सभी विषयों में दो जाती है जहाँ प्रमादा की सहन यता से पदार्थ का विवेचन किया गया दो । इसलिये प्रत्येक शाखा की स्याय संक्षा दो सकती है। इसी कारण मीमांसा प्रभ्नति के कतिपय प्रस्थों के नाम में भी स्याय शब्द देखने में झ्ाता है । यथा--मीमांसान्मायप्रकाश न्पायरत्नाकर जैमिनीयन्यागसाला लिख्ल इत्यादि । इन श्थ्ों में न्याय शब्द का झर्थ है युक्तिसंगत विवेचन । क्र... _.... बेदाकिएंक्लायस्यिसयाण् लेके या केसे एएतणणणण- बेदाधुल्द/ंपिसाघनमधिकायास्सका पढ़ाया स्माया ।... नस्वापकोस चाग
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