जन - जन के बीच आचार्य श्री तुलसी भाग - 2 | Jan-jan Ke Bich Acharya Sri Tulasi Bhag - 2
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
234
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हंसराज बच्छराज नाहटा - Hansraj Bachchharaj Nahata
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही-
चाहता कि इस सुलभता पर कुछ रोक लगाऊं । जिसके स्वास्थ्य पर प्रति-
कूल प्रभाव नही पडे वह यथेष्ट ईशु-रस ले सकता है और पी सकता है ।
हमारी परम्परा के अ्रतुसार भ्राचायं की श्राज्ञा के विना कोई भी साधु
कोई भी वस्तु ग्रहण नहीं कर सकता । बिना श्राचा्यं को दिखाए उसका
उपयोग भी नहीं कर सकता । पर इस समय मैं सबको छूट देता हूँ ।
मार्ग मे चलते यदि शुद्ध ईशु-रस मिले तो कोई भी उसे ग्रहण कर सकता
है। हाँ, जो ईक्ु-रस ग्रहण करे वह श्राकर मु ज्ञात भ्रवश्य कर दे । मैं
देखता हूँ कुछ साधु इस विधि मे झसावधानी करते है। वह सघ की
दृप्टि से उपयुवत नही है । श्राजञा चाहें छोटी हो या बडी हमे उसका
निप्ठा से पालन करना चाहिए । मैं आज सबको सावधान कर देता हूँ ।
यदि इसमें किसी ने प्रमाद किया तो ये प्राप्त सुविघाएँ श्रधघिक दिनो तक
नहीं चल सकेगी ।
इसके साथ-साथ एक वात श्रौर भी है, जिस स्थान से एक बार रस
ले लिया है वहाँ फिर दूसरी बार कोई साधु न जाए। सब साधु एक
साथ तो चलते नही है । भ्रत. पीछे झाने वाले साधुझो को यह पुछ कर
'रस लेना चाहिए कि यहाँ से पहले कोई रस ले तो नहीं गए *? वार-
वार एक ही स्थान पर जाने से दाता के मन मे साधु्रो के प्रति श्रश्नद्धा
उत्पन्न हो सकती है। हम किसी पर भार वनना नही चाहते । कोई
खुद्दी से हमे कुछ दे, वही हमे लेना चाहिए ।
यद्यपि आचायेंश्री श्र भी कुछ कहना चाहते थे पर उस समय प्रति-
क्रमण मे विलम्ब हो रहा था । श्रत श्राचायंश्री ने उन विषयों को किसी
दूसरे दिन के लिए छोड दिया ।
चदोली से विहार कर हम मुगलसराय की शोर श्रा रहे थे । मार्ग में
राजस्थानी लोगो का एक काफिला मिला । उसमे बूढ़े, वच्चे, स्त्री-पुरुष
सभी लोग थे । वे घोडो, गधो तथा उंटो पर श्रपना घर हार लादे डाल
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