विराम चिन्ह | Viraam Chinh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीगणेश सन्‌ ३४ में मैंने एक उपन्यास लिखा था--'चार दिन' । निरालाजी ने उसे चांद प्रेस भेजने को कहा । प्रकाशकों ने उसे स्वीकृत किया श्रौर छपने पर पैसा भेजने का वादा करके मुझसे कापीराइट ले लिया । चार साल बाद चार दिन' छपा और मैं पैसों का इन्तजार करने लगा । कई बार लिखा श्रौर शीघ्र भेजने का श्राइवासन मिला । शआ्राखिर एक दिन चांद प्रेस दिवालिया घोषित हो गया । मेरे पास इस श्राद्य्य का पत्र ग्राया--महादाय, श्राप पुस्तक के लेखक हैं, इसलिए “चार दिन का कापीराइट खरीदने का श्रवसर सबसे पहले हम श्रापको दे रहे हैं । मेरे साहित्यिक जीवन का यह श्रीगणेशा बहुत ही उपयुक्त साबित हुमा है । र्९५५




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