आत्मजागृति भावना | Aatmajagriti Bhawana
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नमस्कार के. प्रकार और फल श्श
कक का ०
ज्ञान, देन, चारित्र, . तप धर्म में आदरू ऐसी हद भावना
' छानेवाछोंका बहुत निजरा [कर्म नाश) दोती है।
(४) निश्चय नमस्कार!-जो राग ट्रेप रहित दोकर स्वयं
प्रयुके समान अपना स्वरूप समझ आत्मध्यानमें म्न रहता है
वह प्रश्न चन जाता हे, मोक्ष पाप्त करता है
दोहा
साधन साधी जुदानकों । मानें एक वनाय ॥
सो निशयनय शुद्ध है। सुनत करम कट जाय ॥ १ ॥
नमन करना, नमस्कार करना अर्थात् हम जिन्हें नम-
स्कार करने हैं उनके समान वनते है इस छिये हमें सद्णुणी
ओर पवित्रात्मार्थोकों दमेशां नमस्कार करना चाहिये
कयानाणाय चलन
नाना
(४) समकितकों प्रगट करनेवाले बार
गु्णॉंकी भावना.
: मोक्षका बीज सम्यकत्व और सम्बक्त्वका मूल कारण
चार भावनाएँ हैं, इस लिये हमेशां उनका चिन्त्वन कर चारों
सद्गुण प्राप्त करना चाहिये, ये गुण प्रकट होनेके पश्चात्
सम्यक्त्व माप्त होती है।
दोदा
: गुणीजनोंकों दंदना, अवगुण देख मध्यस्थ,
खीं देख करुणा करे, मित्र भाव समस्त | १॥|
[१] प्रमोद भावना:-दमेशां गुणाजुरागी बनना । दूसरोंके
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