एकांकी - समुच्चय | Ekanki Samuchchaya

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Book Image : एकांकी - समुच्चय  - Ekanki Samuchchaya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे जेसे कुछ जानती दी नददीं । क्या तुम्दं सालूम नद्दीं की..लोढे से लोदा चंजतें देखकर मेरा बेटा मेरी गोद में “छिपने के लिए यहाँ भागकर घ्याया द । कया ठुम उसे यददँ से भी भगाना. चादती हो ? बेटा ! बव कहाँ जाएगा, यहाँ से भागक उसे श्राश्रय पाने को स्थान कहाँ मिलेगा? परमेश्वर के लिये यहद लोद्दे की कली वादर फेंक दो । कंदीं ऐसा चद्द फिर लोहे की कढ़ाई से टकरा जाए, शरीर मेरा वेटा ढरकर यहाँ से भी भाग निकले, फिए में क्या करूंगी ? _. ( महामावा का मुह चमकते लगता है, मगर वह अपनी खुझी छिपाती और हलवे से थाल भरकर पति के सामते रख देती है। महाराणा कुछ देर चुप रहते हैं, इसके वाद थाल को परे सरका देते हूं श्रौर जोश से तनकर खड़े हो जाते है 1 ) महारांखा--वस कर, माँ वस कर। तूने ्याँविं खोल दी हैं, तूने मुफे जगा दिया दे, तूने श्रन्वेरे से निकालकर ज्योति श्यीर जीवन के पथ पर डाल दिया दे । कितनी लज्जा और शोक की वात है कि राज- पूत॑ का बच्चा पहाजित दाकर भाग आर । मगयाद, जाने, मुझे क्या दो या था । मुक्के कड्ों कट-मर जाना चाहिए था ! परन्वु-- ( महामाया पति की तरफ श्रद्धापूर्ण श्रेम से देखती है 1 ) तुम्दारा कद्दा-सुना व्यथ नहीं गया | में. अपनी कायरता के लिए तुम । क्षमा माँगता हूं । कुल्ीना-वेटा ! तू अब फिर वद्दी निमय, युद्धवीर, साइसी जस- घिन्तर्सिद दै, जिसने सेरा दूध पिया था, जिसने कुल का नाम उब्नवल १ करनें का त्रत लिया था, जिसके मुह की ओर देखकर मेरी सुरमाई आशाएँ दी दो जाती हू । मददामाया खुश दो, तेरा स्वामी अपनी दराजय के काले दाऱा को मिटाने के लिएं खड़ा हो गया हू । महामाया-अजयदद सच आप दी की कृपा महाताणा--माँ ! तुम पर गे दैं, और इस पर थीं गये है । तम ऐोनों ने मिलकर मेरी आँखें खोल दो हैं। दमारी थाने चाज्ञी सन्तान सुनकर खुशी से पागल हो जाएगी कि उनका एक पू्वंज परा-




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