सरस्वती संवाद | Saraswati Samvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र सरस्त्रती संवाद म है, उतनी पिगल में नहीं । शायद इसीलिए चारण कवि डिंगन को उड़ने वाली मस पा मानने हैं। मठ प्रदेश सल्कूत ये कद रयान से दूर होने के कारण उस पर इसका कोइ प्रमाव नहीं पड़ सका । सच्तेपर में वह मापा जो सस्कत के प्रमाय स सुन हे, धतमापा दे व्याकरण, छुदशास्न तथा. साइिव्य सम्पन्ी निवमों से रयनय दे, डिगल वदलाई | डिंगल शब्द की ब्युतन्ति इस। श्रथ मे होना चादिए । मदभाषा में डगल (ढगल) मिट्टा के नैवर्गिक बने हुए ढेले को कहते हैं, निस पर कोइ कारीगरों नहीं होती, किस्‍्तु उस पर इच्ट्लानुसार नियय क्या ता सकता दै। उठा प्रवार डिगल मी मानों मिट्टी हे ढेले यर्थात्‌ श्रपने अनगढ रूप में है, तिस पर सादित्यिक नियमों की पोलिश नहीं है श्रौर यदि दिखाई मी दंती ई तो पिंगल को तुलना में उसका रग थ्त्यन्त फोका दे । उदयराज उज्जवन ने “दा से तात्वर्य पत्नी की पाल दौर 'ल' वा 'लिये हुए' से लेकर इसका श्र पक्षियों की माँति स्पच्छुदता से उड़ान भरने बाली मापा से लिया दे, जो इसके भावार्थ को समझाने में इमारी परयात सद्दायता करता हे । डिंगन पर विचार करते समय इस प्रकार को विशेषताश्ों को ध्यान में रखना श्ायश्यक है श्रीर तमी इसका सदी स्य हियर दिया जा सकता दे | ( शेप प्रष्ठ ४ का कै का टेर लगता रहा है तो दूसर। द्योर यथार्थ चिय्रय॒ के नाम पर जुगुप्साजनक रचनाओं री कद सा या गई हे 1 मद्दानु कलाकारों की रचनाश्रों में मदेव सत्य की दुक एसी श्रसड दाहि मिलता है, जिसके प्रकाश में इस जीवन के समुस्ज्वन रूप श्र सासयीय सहिसा को श्रामास पा सकते हैं । कोई कयि जब श्पनी रचना में किस मद्दान चरिम का श्वनारखा रुरता दे तो उस चरिन को मददायगता स'टा से व्यक्तित्य से ही प्रात होता दे एवं श्रपने ब्यत्तित्व को यदद मद्दाप्राणुता पायों पे साध्यय्र स व श्रपने पाठरों से विदरित करना चाइना है । इस प्रेकार जिस कलाकार ने ज्ञीयन को नितनों निकटता स दवा श्र उसका जितना बढ़ा श्श स्वेय ग्रहण किया है श्रना रचना के द्वारा वद उतनी हा बढ़ी प्रेरणा श्रपन पाठकों या दर्शकों को दे सकता दै शरीर उसा श्वनुषात में उसकी कला के उत्कपापकप को निणंय किया जा सकता है । सृप्टि के प्रारस स शव तक का इतिदास सनुष्य की मिरतर दग्रगति श्रौर वद्धिएतु चेतना का इतिहास है। दनेर बार शेर मौतिक दौर शविमोतिक व्यक्तिया मे फेस कर, श्नेर ्वर्सन चका में पिसकर भा मनुष्य बराबर आगे बढ़ता हो श्ाया दे । पिविघ दुस्ठाइसिक कार्यों श्ारचर्य वन श्याहिरारों श्र सीदर्यमय सृष्टियों द्वारा उसने श्रपनी इसी जनयाध्रा की गाया लिसी है । कला चेत्र के श्रनेक प्रयोग मो उसके इसी श्रमियान के स्मारक हें । उसने श्रमु दरता कयोच में रइ कर सुदरनता का सधान रिया है, द्वसदुलम में सनुलन दर वने का प्रयास हिया है, श्रसमतियों के मध्य समति की याघना की हे । दक्षिण भारत वे भव्य श्र विशालकाय सदिर ठपा मिस के ध्यसावध्टि पिरामिड, यूनान श्ौर रोम की सुरम्य देव ग्रतिमाएँ, श्रवता एलोरा के रगीन भित्तिचितर, भारतीय तथा जर्मन सगीतहों की मायपूर्ण उद्गातियों श्रीर माल्मीकि' श्रौर व्यास होमर श्रीर दात, शेक्सतियर श्रौर मिल्टन, दूर श्रीर पुलसी के उत्काट का य म्रय इस सत्य के हो ग्रयर-मपर सात हैं । इस प्रकार कला ज्ञ को वास्तविक जॉयन को जे श्नुकति दे श्रौर न उगस सर्वदथा तटस्थ किसी कल्पना लोक की स्पैर- बिद्दारियी मी मेनका ही । वद जावन की दोपदइरी में खिला बधूक का श्रब्णाम पुष्प है , मानव चयन, थो स््रय श्पूण एव रिक्त है, उसकी शपूर्णता श्रीर रिक्त तर को दुर करने का एक सींदयमय प्रयास । वह मानव «की स्वय को स्थापित करने का टुदेशनोय चेप्टा का हो दुसरा नाम दे श्ौर श्रपने इसा रूप में न वेयल व विगत कल का श्रविस्मरणीय रसिर श्वाग्न्यान है, बल्कि घागतवकल वा श्रक्षय श्रीर चिर् तीन प्रेरणा मो !




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