दुर्गा दास | Durga Das
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
212
श्रेणी :
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द्विजेन्द्रलाल राय - Dvijendralal Ray
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पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)डृट्य । पद्दला अंक । ण््
समर ०--जाता हूँ दुगीदास ! और एक बात--केवल एक बात
कहूँगा। में एक बातमें जनाबके पूवे पुरुष अकबरकी अपेक्षा जनात्र-
पर अधिक श्रद्धा रखता हूँ । क्योंकि आप उनकी तरह मीरी
छुरी नहीं हैं । आप खाठिस मुसढमान--सरठ गैँवार कइर
मुसलमान हैं । आप उनकी तरह वब्याहके बहानेसे हिन्दुओंका
हिन्दूपन नहीं नष्ट करते । सीधी, साफ ओर पैनी पुरानी मुसलमानी
रीतिसे अपने धर्मका प्रचार करते हैं ।--कहिए, इसंसे मैं नहीं
डरता । बस; अनुग्रह न कीजिएगा । जो अनुग्रह आप कर चुके
हैं वही काफी है । बह अनुम्रह अभीतक हमारे सैंभाठ नहीं सैंभला ।
दोहा है, अव और अनुग्रह न दीजिएगा !-- ( प्रस्थान)
( तहव्वरखौका आग बढ़कर समरदासका राकनकी चढ्टा करना और
औरंगजेबका मना करना । )
औरंग ०--दुर्गादास, तुम्हारी खातिरसे मैंने तुम्हारि बदमिजाज
माइको माफ कर दिया | लकिन तुम्हां भाइने एक बात सच कटी । मैं
मीठी छुरी और ढांगी नहीं हूँ । में भीतर और बाहर मुसलमान
हैं | इस पुरांन मजहबकों फेलाने और बढ़ानेके लिए ही में इस
तख्तपर बरेठा हूँ । तख्तपर बेठनेके पहले मैंने चाहे जो किया
हो---बादशाह होनेके बादसे में इसी धर्मकी फकीरी कर रहा हूँ ।
दुगी०--इस बातकों मैं मानता हूँ जहाँपनाह !--उसके
बाद भी अगर आपने किसीके साथ बुरा बता किया होगा तो युरे
आदमीके साथ । सो तो कुछ अनुचित नहीं हे ।--इसको दयाकी
दृष्टिसि उचित चाहे न भी कहें, लेकिन नीतिके विरुद्ध कभी नहीं
कह सकते ।
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