सवाक चित्र कहानी | Sawak Chitra-kahani

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Sawak Chitra-kahani by मथुराप्रसाद - Mathuraprasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फिल्‍्म-कद्दानी ही सब हमें यद समफना है कि किस भाँति एक कहानों चित्रपट के योग्य चनायी जाती है | वढी-वड़ो फिटमकम्पनियों के सच उक प्रतिवपे के छारम में ही यह निरचय कर लिया करते हैं कि इस घर्प उन्हें श्तिनी फिल्में [ सम्पूर्ण कहानी ) बनानी है। तदनन्तर वे बाहर के लेखकों के उपन्यास या नाटक खरीद लेते हैं । या स्टाफ के लेखों को फिल्‍म कहानी लिखने का थादेश देते हैं । यह दो से पदले ही कह चुका हूँ कि कहानियाँ कई प्रकार की हुआ करती हैं । जिनमें युद्ध, विवाद, धर्म, जासूसी और पेमफदानी दी जनता झधिक पसन्ट किया करती दे । कहानियों की पसन्दगी को परीक्ष! करने के लिये श्रमेरिक्रा की फिरम-कम्पनियाँ विभिन्‍न प्रकार की फिल्मों को दशकों के सम्प्ुख उप स्थित करती है। इससे उन्दें यह मालूम हो जाता है कि जनता किस श्रकार के चरिन्नों पर धधिक श्राकृष्ड होती है । फिर साल दो साल तक येसे ही कथानकों की सरगरमी रदती है | जब घेसी कहानियों से जनता का दिसाग थक-सा जाता है तो वे पुन) नये चरिन्न चौर नये ढंग की कह्दानी दुदने ल्तगते है 1 भारतदप में भी यही प्रथा है | दोन्तीन फिटम-कम्पनियों को छोढ़दर प्रायः सभी फ्टिम-क्पनियों की घारा पुकन्सी वहदी रददती है । झस्तु । फिल्‍्म-कहददानी को निरुपण करने के पइचात्‌ फिल्म-दिग्दुर्शक यड़ देखता है कि क्सि चरित्र के लिए कौन-सा झमिनेता और दौन-सी शमिनेत्रो सटीक बैंडेगी । जिसते दर्शकों का मन '्घिक घाकष्ट हो पौर स्यवसाय में सफज्ञठा भी मिले ।




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