उस्तादाना कमाल | Ustadana Kamal
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
252
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ये इसका हैं १७
से पूर्व इस्लाहोंका संकलन किसी शाइर या अदीबने नही किया था । इस
तरफ हज़रत “सफ़दर' सिर्जापुरीका ध्यान आकर्षित हुआ । मीर, दर,
मुसहफ़ी, आतिश, नासिख, ग़ालिब, मोगिन, जौक, दाग, असीर, तस्लीम,
तस्नीम, अमीर मीनाई-जैसे रौशन दमाग उस्ताद भावी पीढ़ीको' डगर
दिखाकर अन्तर्ध्यान हो चुके थे । जिन शाइरोने उनकी आँखे देखी थी ।
जुतियोमें बैठकर कुछ सीखा था और अपनी शाइरीका चिराग उनकी
ज्योतिसे रोशन किया था. और स्वयं उस्तादीके मत्तबेको पहुँच गये थे ।
वे भी प्रात:कालीन दीप बने टिमटिसा रहे थे । कब कौन-सा चिराग
अपनी लौ खो बैठे; यही अन्देशा 'सफ़दर' मिर्जापुरीको सताने लगा ।
उस्ताद शाइरोंका कलाम तो उनके दीवानोंमें सुगमतापुवंक सिल
जायगा, किन्तु उन-द्वारा ली-दी गयी इस्लाहें फिर कहाँ और क्योकर
नसीब होंगी ? शाइरका वास्तविक जौहर तो इस्लाहों ही से प्रकट होता
है। अत: तनिक-सी चुकसे उद्दू-अदबका खज़ाना एक अमूल्य निधिसे
रिक्त रह जायगा ।
अब पढताये कहा होत है जब चिड़िया चुग गयीं खेत ।
अतः सफदर मिर्जापुरी इस्लाहूें संकलन करनेके लिए दीवानावार
लखनऊके गली-कूचोमे उस्तादोके दरोंकी खाक छानने लगे । शुरू-शुरू-
मे कुछने यह कहकर उन्हें टरकाया--“हमारे कलामपर उस्तादने इस्लाह
देनेकी जरूरत ही महसूस नहीं की और हमने अपने शागिर्दोको दी गयी
इस्लाहोंकी नकल नहीं रक्खी ।” कुछने यह कहकर चलता किया--
“हुमें जो इस्लाहें दी गयी थी, उन्हे हमने अपनी ब्याज (कविता सक-
लन) में नोट करनेके बाद जाया कर दिया । यह माछूम होता कि कोई
अदीब इस्लाहोंको भी शाया ( प्रकाशित ) करेगा तो. सहेजकर रख
लेते ।””
लेकिन. 'सफदर' निराश न हुए । वे अपनी धुन के पक्के थे । तीन वर्ष
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