समीचीन धर्मशास्त्र | Sameecheen-darmshstra

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Sameecheen-darmshstra by जुगलकिशोर मुख़्तार - Jugalkishor Mukhtar

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जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना कि ग्न्थ-परिचय स्वामि-समन्तभद्राचाये-प्रशीत इस समीचीन-धर्मशास्त्रमें आवकोंको लक्ष्य करके उस धर्मका उपदेश दिया गया दे जो कर्मो- का नाशक दे और संसारी जीवोंको संसारके दु्खोंसे निकालकर उत्तम सुखोंमे धारण करनेवाला अथवा स्थापित करनेवाल्ा है । वह घ्मे सम्यग्द्शन, सम्यस्ञान और सम्यक्चारित्रस्वरूप हे और इसी क्रमसे झाराधनीय है। दर्शनादिककी जो स्थिति इसके प्रतिकूल है-सम्यकुरुप न होकर मिथ्यारूपको लिये हुए है--वही अधमे है और वही संसार-परिश्रमणका कारण है, ऐसा आचार्य- मददोदयने प्रतिपादन किया दै। इस शास्त्रमे घर्मके उक्त ( सम्यग्दर्शनादि ) तीनों अंगोंका-- रत्नत्रयका--दी यक्तिंचित्‌ विस्तारके साथ वर्णन है और उसे सात अध्ययनोंमें विभाजित किया है । प्रत्येक अध्ययनसे जो कुछ वर्णन दे उसका संक्तिप्त सार इस प्रकार दे-- प्रथम 'अष्ययनमें सत्यार्थ आप्त आगम और तपोभूत्‌ ( शुरु ) के त्रिमूडठारहित तथा अष्टमद्द्दीन और झष्टंगसहित श्रद्धान- को 'सम्यग्दशन” बतलाया दे; आाप्त-ागम-तपस्वीके लक्षण, कोक-देव-पाखंडिमूढताओंका स्वरूप, ज्ञानादि 'अष्टमदोंके नाम और निःशंकितादि अष्ट अंगोंके मदंत्वपूण लक्षण दिये हैं। साथ ही यदद दिखलाया दे कि रांगके बिना आप्त भगवानके हितठोपदेश




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