पालीकोससंगहो | Palikosasangaho

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Book Image : पालीकोससंगहो   - Palikosasangaho

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(रे ) कहलाता था ( ५.० ३-४ ) । अमरकोष में यह विवेचन कुछ मिननता लिये हुये है (र१०र-४)। शिल्पी पांच प्रकार के होते हैं->तक्ष क, तन्वुवाय; रजक; नहापित और चर्मकार । तन्तुवाय; मालाकार; कुम्मकार; सूचिक; चमंकार, कल्पका, खिन्नकार; पुष्पवजंक, नलकार, चुन्दकार, कर्मार; रजक, जलादारक, बीणवादक, धानुष्क; वशणीवादक; हस्तवाद्यवादक,; पिश्वविक्रे ता, मद्यविक्र ता, इन्द्रडालिक, शौकरिक, सगयाकारी, वागुरिक, भारवाही, भृत्य; दास, कीतदास, नीच, चाण्डाल, किगत, म्लेच्छुजाति; मृगव्याध, आदि को शुद्रवर्ग में समाहित किया गया है (५.०३-४.१८) । लमरकोष मे भी लगमग यही मिलता है (२ १० ६-४६) । आभरण के प्रसंग में किरीट, मुठु टस्थ प्रधानमणि, उष्णीष, कुण्डल, कर्गामरण कटालइ्वार; मुक्तामाला, बलय, करमूषण, “किछ्किगी; अजुलीयक, मुद्रिका, मेखला, केयर, नूपुर और मुखफुल्ल का नाम मिलता है । वस्त्रों में परिघान, उत्तरीय, कप्चुक, बंस्त्रान्त; शिरस््राण, चीवर, कार्पासबस्त्र, वल्कल- यर्म, कौशेयवस्त्र जोर ऊर्णायुवस्त्र का नाम आया है । वस्त्रोर्पत्तिस्थान में फल; त्वक; क्रिमि और लोम का उल्लेख है । गन्घ द्रव्यों में चन्दन, काव्ठा- नुसारी, अगरु, कालागरु, कसतूरी कुट, लवड्ध, कुड्कुम यक्षघूप) कक्कोलफल; जातिफल, कप र; लाना, ता्पिग तैल, अज्ञन, वासचूर्ग, विलेपन और माला का नाम मिलता है । रोगों में यदमा, सासा, शलैष्म, शरण, विस्फोट, पूथ; रक्‍्तातिसार, अपस्मार पादस्फोट. कोशब्द्धि; श्लीपद; कडु, विकच, शोफ; समर्थ, बमन दाह, नतिसार; मेधा, जर, क्वास; श्वास, भगन्द्र, कुष्ठ और सल का उल्लेग्ब है ( र८२-३३० | ४. भरूगोछ अभिधानप्पदीपिका मे चार महाद्वीप गिनाय॑ गये है--पूर्व विदेश, अपरगोयान, जम्बूद्वीप और उत्तरकुरु ( १८३ ) । जैनागमों में मनुष्य क्षेत्र के अन्तगत कुछ तीन द्वीपो का वर्णन मिलता है - जम्बूदीप, धातकीखण्ड और पुष्कराड़ द्वीप' । महाभारत में तेरद द्वीपों का उल्लेख है* और विष्णु- पुराण में सात द्वीपों का नाम आता है--जम्बूद्वीप, प्लभद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुद्दीप, क्रौद्नद्वीप, दाकद्वीप और पुस्करद्वीप । अभिधानप्पदीपिका में २१ देशों के भी नाम मिलत हैं -- कुरु, शाक्य, कोराल, मगध, दिवि, कलिज्ज, अर्वन्ति, प्चाल, वड्जि, गधार, चेंतय, वग, विंदेह, कम्बोज, मदर, भग्ग, अज्ञ, सीइल, कश्मीर; कागी और पाए्डघ १. तस्वाथसूत्र, तृतीय अध्याय २. महामारत, ७३.१६.




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