जिन पूजा धिकार मीमांसा | Jin Puja Adhikar Mimansha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
402
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।
पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)थ
ताको अनुभव करते हुए श्रीसकलकीर्ति आचाये सुभाषितवलीमें
थहांतक लिखते हैं किः--
“पूजां विना न कुर्येत भोगसोख्यादिक॑ं कदा |”
अ्थात--गृहस्थोंको विना पूजनके कदापि भोग और उपभोगादिक
नहीं करना चाहिये । सबसे पहले पूजन करके फिर अन्य काये करना
चाहिये । श्रीधमंसंग्रहश्रावकाचारमें ग़ृहस्थाश्रमका स्वरूप वर्णन
करते हुए लिखा है किः--
“इज्या बात्ता तथो दान खाध्यायः संयमस्तथा ।
पटकमोणि हे के
ये पट्कमोणि कुवेन्त्यन्वहं ते यृहिणों मताः ॥।”
नअ० ५, छो० २६३
अ्थात्--इज्या ( पूजन ), वात्ती ( क़पिचाणिज्यादि जीवनोपाय 0;
तप, दान, स्वाध्याय, और संथम, इन छह कमोंको जो प्रतिदिन
करते हैं, थे गृहस्थ कहल्वाते हैं । भावार्थ धार्मिक और लाकिक, उभ-
यरदष्टिसे य ग्रहस्थोंके छह नित्यक्म हे । गुरूपास्ति जो उपर
चणैन की गई हे, वह इज्याके अन्तर्गत होनेसे यहां प्रथक नहीं कही गई ।
भगवज्िनसेनाचाये आदिपुराणके पे ३८ में निम्नलिखित
श्ोकों द्वारा यह सूचित करते है कि ये इज्या, वात्तो आदि कम उपासक
सूतके अनुसार गहस्थोंके षटकर्म है । आर्यषट्कमेरूप प्रवत्तना ही
गृहस्थोंकी कुठचयी है. और इसीको. सृहस्थोंका कुलधर्म भी
कहते हैं:--
4 इ्ज्य दर 1 र स्वाघ व उराय १
ज्यां वातां च दत्ति च खाध्यायं संयम तप ।
श्रुतोपासकस्रत्रत्वात् स तेम्यः सम्रुपादिशत् ॥ २४ ॥।
विशयुद्धा इत्तिरस्थायंपट्कमोलुमवत्तेनम् ।
गृहिणां कुलचर्येष्टा कुठधर्मो5प्यसो मतः ॥ १४४ !।””
महाराजा चामुण्डरायने चारिन्नरसारमें और विद्वद्वर पं० आशाधघर-
जीने सागरधमांम्तमें भी इन्हीं पटकर्मोका वर्णन किया है । इन
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