भाई के पत्र | Bhai Ke Patra

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Bhai Ke Patra by श्रीरामनाथ सुमन - shriramnath Suman

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.. दस बड़ी पस्तकों के श्रसार एवं प्रचार में बड़ी वाधायें आ जाती हैं । सुने संतोष इसी बात का है कि चाहे मैंने भपथी योग्यता से बड़ा काम से दिया हो पर उसे सच्चाई के साथ करने की चेषा की है और सेरी सम्मति में दुनिया में, और विशेषतः स्त्रियों की दुनिया में, योग्यता की अपेक्षा सच्चाई उयादा अच्छी चीज़ है । सच्चाई के सम्बन्ध में तो इसी से जाना जा सकता है कि मैंने इस ' पुस्तक का अधिकांश अपनी छोटी बहन भगवती को लिखा है जो विवाह के योग्य हो गई है । उसे--अपनी सगी बहन को जैसा मैं बनाना देखना ्वाइता हूँ, वैसा ही मैंने छिखा है । इसलिए इसे पढ़कर कोई सुझपर 'इंष्याद्लेष का, झठाई का इलज़ाम नहीं लगा सकता; अयोग्यता का भडे ही छगा ले जिसे मैं पहले ही स्वीकार कर चुका हूँ ।-- सुझे भाशा है कि इस प्स्तक से बहनों का उपकार होगा भर यदि मेरी आशा पूरी हुई तो में अपने को घन्य समझूँगा । बहनों से एक प्रार्थना दै और वह यह कि इस पुस्तक को पढ़ते समय इसका विरोध करन और इसका जवाब देने का ध्यान भुला; न इसकी बातें को बिना विचार मान लें, वे इस केवल मंभीरता-पुदक विचार करन के -खुयाल से, इसमें काई >च्छाई हो तो उसे लेन के लिए ही पढ़ें । बस हूटुराडी, ) ं दर कर पा बहु ( श्रीरामनाथलाल “सुमन




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