कल्याण कथा कोष | Kalyan Katha Kosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२३ कर्चव्य स्थकर्सव्य पालन किया फल की इच्छा छोड़ । उस सैनिक को घन्य है लाख सहल्न करोड़ 11 सेनाध्यक्ष सिडनी जय युद्ध क्षेत्र में घायल होकर सिर पड़ा तब एक सैनिक का ध्यान उस मोर आकृष्ट हुआ 1 उसने पूरी बक्ति से प्रत्याक्रमण करके दवात्रुओं को खदेड़ दिया । फ़िर सेनापति को उठाकर ऐसे सुरक्षित स्थान पर ले गया जहाँ किसी प्रकार का भय नहीं था । सैनिक अपने कर्तव्य का पालन बिना किसी लोभ के कर रहा था । उसे शायद गीता के इस भाव का स्मरण हो रहा था-- कर्मण्येवाधिफारस्ते मा. फलेपू फदाचन मा. कर्मफलहेवुसूमा ते. संगोडस्त्वकर्मणि 11 हिरा कर्म करने का ही अधिकार है फल पर विचार करने का नहीं तू क्मफल का कारण मत वन भौर तेरी अकम्म आलस्य में आसक्ति भी न हो 1 उस सैनिक की सेवा से प्रसन्न होकर सेनाध्यक्ष ने उसका नाम पूछा तो उसने उत्तर दिया-- मैंने इनाम पाने के लिए आप की रक्षा बौर सेवा नहीं की है इसलिए नाम जानकर भाप क्या करेंगे ? ऐसा कह- कर घिना नाम बताये ही वहाँ से चला गया । घिहाय कामानू य सर्वान्‌ पुर्सांश्चरति निःस्पुह 1 निर्ममो निरहंकार . स.... शास्तिमघिगरुधति ॥ जो पुरुष सब कामनाओं को छोड़कर इच्छारहित हो जाता है जो ममता और अहंकार से रह्टित है वही शान्ति पाता है 1 # हि कर कर कल्याण कथा कोप ४ भाग ४ ह २३




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