मकरन्द | Makarand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
19 MB
कुल पष्ठ :
183
श्रेणी :
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डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwal
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भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भणत गोरख काया गढ लवा, काया गढ लेवा, जुगि जुगि जीवा ॥
काया पर काल का प्रभाव जरा श्रौर मृत्य से प्रकट होता है । समय
बीतने के साथ दरोर में भी परिवर्तन होता जाता हे और बूढ़ा होकर
मनुष्य मर जाता है । दरीर को काल के प्रभाव से बाहर तब समकना चाहिए
जब वह जरा, मृत्य श्रादि विकारो से रहित होकर सेव बालस्वरूप रहे ।
इसी बालस्वरूप को नाथ योगियों ने श्रपना लक्ष्य बनाया । इसी दृष्टि से
रसेइवर योगियो नें रस ( पारा ) शझ्रादि रसायनों का श्राविष्कार किया था ।
उनका विश्वास था कि शरीर में जिन रासायनिक परिवतंनों से जरा श्राती है,
रसायनों के प्रयोग से व रुक जाते हे श्रौर दारीर श्रजर हो जाता हे ।
परन्तु रसेइवरो का दावा सर्वाद्य में सत्य नहीं था । रसायनों का प्रभाव स्थायी
नहीं होता था । इसलिए नाथ योगियों ने उन्हे सिद्धि प्राप्ति सें श्रससथ
न्तलाया--
सोने रूप सी काज । तो कत राजा छाँडे राज ।
जडी बूटी भूले मत कोई । पहली राँड बैद की होई।
जडी बूटी श्रमर जे कर । तौ बंद धनतर काहे. मरे ॥
( गोरख )
परन्तु उन्होने रसेन्द्रो के मार्ग का सर्वेथा त्याग नहीं किया । सदा के लिए
न सही, कुछ काल के लिए तो बह शरीर को रोग श्रौर जरा से बचा रखते थे,
प्रतएव जडी-बूटी इत्यादिकों के द्वारा काया-कल्प करना उन्होने योग की युक्ति
में सहायक माना है श्रौर यम-नियम श्रादि श्रारमिक बातो के साथ-साथ
सका विधान किया है--
प्रबधू शभ्रहमार तोडौ, निद्रा मोडौ, कबहूँ न होइवो रोगी ।
छठे छमासे काया पलहिवा नाग बंग बनासपती जोगी ॥।
यही काम नेति, घौति, बस्ति, नौली शझ्रादि घट्कर्मों से होता हैं ।
कायादुद्धि का लक्षण यह है ।--
बड़े बड़े कल्हे मोटे मोटे पेट । नहीं रे पता गुरू से भेंट ।
खड खड काया निरमल नेत । भई रे पूता गुरू से भेट ।
शरीर की चचलता के लिए श्रासनो का विधान है । योनियों के अनुरूप
ध्रासनो की भी सख्या चौरासी लाख है, परन्तु प्रधान झ्रासन दो हे-पद्मासन
्रौर सिद्धासन ।
काल-विजय की इच्छा से बहुत प्राचीन काल से योगार्थी दारीर पर विचार
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