मकरन्द | Makarand

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Makarand by डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwalभगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr

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डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwal

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भगीरथ मिश्र - Bhagirath Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( € ) भणत गोरख काया गढ लवा, काया गढ लेवा, जुगि जुगि जीवा ॥ काया पर काल का प्रभाव जरा श्रौर मृत्य से प्रकट होता है । समय बीतने के साथ दरोर में भी परिवर्तन होता जाता हे और बूढ़ा होकर मनुष्य मर जाता है । दरीर को काल के प्रभाव से बाहर तब समकना चाहिए जब वह जरा, मृत्य श्रादि विकारो से रहित होकर सेव बालस्वरूप रहे । इसी बालस्वरूप को नाथ योगियों ने श्रपना लक्ष्य बनाया । इसी दृष्टि से रसेइवर योगियो नें रस ( पारा ) शझ्रादि रसायनों का श्राविष्कार किया था । उनका विश्वास था कि शरीर में जिन रासायनिक परिवतंनों से जरा श्राती है, रसायनों के प्रयोग से व रुक जाते हे श्रौर दारीर श्रजर हो जाता हे । परन्तु रसेइवरो का दावा सर्वाद्य में सत्य नहीं था । रसायनों का प्रभाव स्थायी नहीं होता था । इसलिए नाथ योगियों ने उन्हे सिद्धि प्राप्ति सें श्रससथ न्तलाया-- सोने रूप सी काज । तो कत राजा छाँडे राज । जडी बूटी भूले मत कोई । पहली राँड बैद की होई। जडी बूटी श्रमर जे कर । तौ बंद धनतर काहे. मरे ॥ ( गोरख ) परन्तु उन्होने रसेन्द्रो के मार्ग का सर्वेथा त्याग नहीं किया । सदा के लिए न सही, कुछ काल के लिए तो बह शरीर को रोग श्रौर जरा से बचा रखते थे, प्रतएव जडी-बूटी इत्यादिकों के द्वारा काया-कल्प करना उन्होने योग की युक्ति में सहायक माना है श्रौर यम-नियम श्रादि श्रारमिक बातो के साथ-साथ सका विधान किया है-- प्रबधू शभ्रहमार तोडौ, निद्रा मोडौ, कबहूँ न होइवो रोगी । छठे छमासे काया पलहिवा नाग बंग बनासपती जोगी ॥। यही काम नेति, घौति, बस्ति, नौली शझ्रादि घट्कर्मों से होता हैं । कायादुद्धि का लक्षण यह है ।-- बड़े बड़े कल्हे मोटे मोटे पेट । नहीं रे पता गुरू से भेंट । खड खड काया निरमल नेत । भई रे पूता गुरू से भेट । शरीर की चचलता के लिए श्रासनो का विधान है । योनियों के अनुरूप ध्रासनो की भी सख्या चौरासी लाख है, परन्तु प्रधान झ्रासन दो हे-पद्मासन ्रौर सिद्धासन । काल-विजय की इच्छा से बहुत प्राचीन काल से योगार्थी दारीर पर विचार




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