जैन धर्म में अहिंसा | Jain Dharm Me Ahinsa

Jain Dharm Me Ahinsa by ब्रह्मचारी सीतलप्रसाद जी - Brahmchari Seetalprasad Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ३. दिन रात मेहनत करके डेढ़ महीनेमें काम भच्छी तरह सीख लिंया और भाठ रुपए माइवार पर कंपोजीटरंकी नौकरी कगी । कुछ मद्दीने काम करनेके पीछे एक माहवारी जखवारके कामका ठेडा १०) महदीनेपर मिल गया। दिनमें नौकरीपर जाते पुवइ शाम भोर रातके ११, १२ बजे तक काम करके सब फाम निमाया | भाजिविकाके लिए इतना परिश्रम करते हुए भी मापने. भपने नित्यकर्म सामायिक, पूजन जाप व स्वाध्यायकों : धर्मपाहन व... कभी नहीं छोड़ा । पुस्तकें इस कामके घर्पविचार |... लिये उस समयमें मिछती नहीं थीं, सो अपने दाथसे लिखकर भपने गुटके बनाए हुये थे जिनमेंसे दो तो भभी तह लापकी यादगारके तौरपर लाहोरके मंदिरजीके शाखभंडारमें रखे हुए हैं। नो कुछ लोकिक सफकत। है उस सबकी मुकनें धर्म है, पुण्योगजन है, सो घर्मसाधनका कोई मी मौका दाथसे नहीं जाने देना चाहिए व इरसमय चढते फित्ते, उठते बरेठते नवकार मन्त्रका जाप करते रहना चाहिए यह लापका ध्येय था । नित्य पाठंकी, प्रजनकी व स्वाध्यायक लिए, पुश्तकोंका काह्ीमें न मिलना एक प्रेसमें का्यकतकि अथोंकि छपबानेके रूपनें भाप हृदयमें बहुत खटकता था + भाव केसे हुए।. नित्य पाठकी पुस्तकका खोजाना और जब- ' तक नकर -न होजावे तबतक नित्यके नियमों नाधाके पढ़नेने दिलमें यहें बिठशां दिया कि पूजन व




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