जैन दर्शन आधुनिक दृष्टि | Jain Darshan Aadhunik Drishti
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इन सबकी भूमिकाएं निहित हैं । माक्से की आधिक क्रान्ति का मल
आधार भौतिक है, उसमे चेतना को नकारा गया है जबकि महावोर की
यह भा्थिक क्रान्ति चेतनामूलक है । इसका केन्द्र-विन्दु कोई जड पदार्थ
नहीं वरन् व्यक्ति स्वय हूँ ।
बौद्धिक क्रान्ति
महावोर ने यह अ्रच्छो तरह जान लिया था कि जीवन तत्त्व अपने
में पूर्ण होते हुए भी वह कई अजो को अ्रखण्ड समप्टि है । इसीलिये अ्रशो
को समभने के लिए श्रश का समभना भी जरूरी है। यदि हम अश को
नकारते रहे, उसकी उपेक्षा करते रहे तो हम अशो को उसके सर्वाग
सम्पूर्ण रुप मे नही समभ सकेंगे । सामान्यत. समाज मे जो भगडा या
वाद-विवाद होता है, वह दुराय्रह, हठवादिता और एक पक्ष पर भडे रहने
के ही कारण होता है । यदि उसके समस्त पहलुझओ को श्रच्छी तरह देख
लिया जाय तो कही न कही सत्यांश निकल आयेगा । एक ही वस्तु या
विचार को एक तरफ से न देखकर उसे चारो ओर से देख लिया जाय,
फिर किसी को एतराज न रहेगा । इस बौद्धिक दृष्टिकोण को हो महावीर
ने स्यादुवाद या अनेकात दर्शन कहा । इस भूमिका पर ही भागे चल कर
सगुर-निगु ख॒ के वाद-विवाद को, ज्ञान और भक्ति के भगड़े को सुलभकाया
गया । भाचार मे अझहिसा की श्ौर विचार मे अनेकात की प्रतिप्ठा कर
महावीर ने अपनी क्रान्तिमूलक दृष्टि को व्यापकता दी ।
महिसक इृष्टि
इन विभिन्न क्रान्तियों के मूल मे महावीर का वीर व्यक्तित्व ही
सर्वत्र भाकता है । वे वीर ही नहीं, महावीर थे । इनकी महावीरता का
स्वरूप ग्रात्मगत श्रघिक था । उसमे दुष्टो से प्रतिकार या प्रतिशोघ लेने
की भावना नहीं वरन् दुष्ट के हृदय को परिवर्तित कर उसमे मानवीय
सद्गुणो--दया, प्रेम, सहानुभूति, करुणा श्रादि को प्रस्थापित करने की
स्पृद्दा अधिक है । दृष्टिविप सपें चण्डकौशिक के विप को अमृत वना देने
मे यही मूल वृत्ति रही है । महावीर ने ऐसा नहीं किया कि चण्डकौशिक
को ही नप्ट कर दिया हो । उनकी वीरता मे शत्रु का दमन नही, शत्रु के
दुर्भावों का दमन है । वे बुराई का वदला वुराई से नहीं वल्कि भलाई से
देकर वुरे व्यक्ति को ही भला मनुष्य दना देना चाहते हैं । यही झहिसक
दृष्टि महावीर की क्रान्ति को पृष्ठभूमि रही है ।
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