लेखांजलि | Lekhanjali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२--भ्राचीन कालके मर्यंकर जन्ठ । न णिदिया भृगर्भविदया खनिजविद्या कीट-पतड्विद्या प्रा झ आदि जितनी प्राकृतिक विद्यायें हैं उनका अध्ययन हिं कई करनेके ठिए प्रयक्ष अनुमवकी बड़ी आवश्यकता होती है। केवठ पुस्तकॉंके सहारे इन विद्याओंका अध्ययन अच्छी नरह नहीं किया जा सकता । इसीसे प्रत्येक देशमें अजायबघर और पुराणवस्तु-संप्रदाल्य स्थापित किये जाते हैं। कढकत्तेमें भी ऐसे मजायववर सौर संम्रहाल्य हैं । ऐसे संप्रद्लयोंमें अध्ययनशीरों के सुभीतेके छिए सिन्न-मिन्न विद्या-विभागोंसि सम्बन्ध रखनेवाले पदार्थों- का नया-नया संग्रह दिन-पर-दिन बढ़ता ही रहता है । एगण-वस्तु-संप्रहाख्योकि प्राणिविद्या-सम्बन्धी विभागमें प्रायः सभी जीव-जन्तुओंके शरीरों मोर भूगर्भ-दिद्या-विशारदोंके द्वारा आविष्कृत प्राचीन समयके जीव-जन्तुओंके कट्ठांका संग्रह किया जाना है । परन्तु प्राचीनकाठके जन्तुओंके कट्ठाठमात्र देखनेसे




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