चन्द्रगुप्त मौर्य | Chandragupt Maury
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
140
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चन्द्रगु्त मोये
[ लेखक--श्री इन्द्र विद्याचाचस्पति ]
चन्द्रगुप्त और चाणक्यके अदभुत जोड़ेके कारनामे विशाख दत्तने सुद्रा-
राचसमें लिखे हैं, पर यद्द नाटक केवल घरू-युद्धतक परिमित है । चन्द्रगुप्तके
भघिक विस्तृत दिग्विजयोंकी उसमें चर्चा नहीं है । मुद्रारात्वस बहुत विचित्र
'और प्रशेसनीय नाटक है, पर उसमें एक दोष भी है । उसमें मौये-साख्र।ज्य
स्थापित करनेकी भारी घटनाको चाणक्य श्र राक्षतकी दिमागी कुइंती बना
दिया है । इससे बढ़कर श्रौर कोई ऊँचा या. विस्तृत उद्देश्य चन्द्रगुप्तकी
विजयों शर चाणुक्यकी नीतियोंका दिखाई नहदीं देता । द्विजेन्द्लाल रायका
नाटक एकतामें और चाणुक्यके योग्य रूखेपनमें मुद्ररा्तससे नीचा है; परन्तु
कथानकके विस्तार; भावोंकी विलक्षणता श्रौर पात्रों की अनेकतामें उससे बढ़िया
है । मुद्राराक्षसकी कथा दो नगरोंमें समाप्त हो जाती है,परन्तु चेद्रगुप्त नाटककी
कथा मध्य-भारतसे लेकर मध्य एशिया तक फैली हुई है । मुद्दाराचसमें अद-
भुत-रस प्रधान है, श्रौर उसके सिवा कोई दूसरा रस दिखाई नहीं देता ।
शुंगारका तो नाम नहीं, वीर-रस भी कह्दीं-ऋद्दीं श्याता है भर जब आता है
अदूभुत-रसमें लीन दो जाता है । द्विजेन्द्रलाल रायके नाटकर्म वीर, शुगार,
करुण और अदूभुत रख समय समयपर श्राते हैं और अपना पूरा चमत्कार
'दिखा जाते हैं । एक विचित्र बात यह है कि रूखे चाणक्यमें भी राय मद्दा-
शयने बत्सल-रसका प्रवेश दिखाकर एक नये और श्वास्तविक चाणुक्यकी
रखना कर दी है । अधिक रसों और श्रधिक-पात्रोंने सिलकर राय मद्दाशयके
नाटकका सौन्दर्य बहुत बढ़ा दिया हैं ।
मुद्राराक्ञस एक बहुत दी विचित्र नाटक है । वह अदभुत है--असाघा-
रण है, कहीं भी बिलकुल साधारण दशाको नहीं पहुँचता, परन्तु एक साधा-
रख अझसाधारणताके ऊपर मी ' नहीं उठता । सारा न”टिक एक व्यापारीका
खाता प्रतीत द्ोता है । कद्दीं नूठा साइस या असाधारण धीरता दिखाई
नहीं देती, वद्दी एक नीति श्ौर वद्दी एक दिमाग्र दिखाई देता है ।
परन्तु चंद्रगुप्त नाटकके कर्त्तीको यद्द कहीं पसंद हो सकता था ? उसे तो
अकान पसंद नहीं--झाकाशका चुम्बन करनेवाली श्रट्टालिका पसंद है। उसका
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