मेरे पिता संस्मरण | Mere Pita Sansmaran

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Mere Pita Sansmaran by इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavanchspati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेरे पिता : सस्नरण ७ आदि कई बड़े दाहरो मे पुलिस कोतवाल के पद पर रह चुके थे । वे नौकरी ते रिटायर्ड होकर अपने गांव में आकर रहने लगे थे । दहां उन्होंने हनेली, बैठक, सत्दिर, आदि बनवा कर तलवन को अच्छा कस्वा बनाने मे काफी हिस्सा लिया । उनके साथ हौ हमारे तीनों ताया जी भी तलवन मेँ ही रहने लगे ये ! सद के रहने के अलग-अलग मकान थे, और निर्वाह के लिए जसीनें थीं । दादा जी की मृत्यु के पश्चात्‌ भाइयों का बंटवारा हो गया । पिता जी सब में अधिक पदे लिखे थे, श्रौर घर-र मे धर्मात्मा समभे जाते थे, इस कारण बेंटदारे का काम मुख्यसरूप से उन्हीं के सुपुरदं किया गया । पिता जी की तबियत के व्यक्तियों की यह विज्ञेषता होती है कि वंँटवारे जैसे मामलों में स्वयं हानि उठाने को स्याय का कार्य समकते हैं । इस बंटवारे में थी ऐसा ही हुआ । चारों भादयों मे मकान, जमीन ओर नकद का जो बेँटवारा हुआ, उसमें पिता जी ने सब से घटिया हिस्सा लिया । अन्य भाइयों को श्रलग-श्रलग मकान मिले, पर हमें बड़ी हवेली का एक हिस्सा सिला था । पिता जी कहा करते थे कि मैने तो जालन्घर में मकान बना लिया है, मुभे तलवन में वड़े मकान की श्रावश्यकता भी क्या है ? तलवन में तीन तरह बी आवादी थी । जिस भाग में हमारे मकान थे, उसे कस्दे का समृद्ध भाग कहा जा सकता




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