सार्वदेशिक | Sarvadeshik

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Sarvadeshik by इन्द्र विद्यावाचस्पति - Indra Vidyavanchspati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महर्षि दयानन्द और झार्य समाज ( अन्यो की दृष्टि में ) ( गताज् से श्रागे ) यह खेद की बात है कि महपषि देयानन्दने वेद के प्रामाण्य पर ब्त देते हए उपनिषदो के महत्त्व पर पर्याप्त बल नहीं दिया जिनमें वेद संहिताश्रों की विशद व्याख्या विद्यमान है श्र उन्होंने गीता जैसे धर्म शास्त्र की प्रामाणिकता स्वीकार नहीं की जो उपनिषदों का सार है * इसका कारण यह प्रतीत होता है कि वे विष्णु पुराण और भागवत में चित्त कष्ण फे पौराणिक चित्र से बहुत ख़िनन थे। यदि वे गीता की श्रपनी शिक्ञ्रों मे सम्पिलित करके उसके कर्म सिद्धान्त की ठीक व्याख्या करते जो उनकी प्रतत ब्रौर दृष्टिकोण के नु कूल था तो उनके हाथ हजारों गुना दृढ़ हो गये होते | हिन्दू धर्म को सुद्निदिवत रूप देने से उनके संदेशों में शक्ति का मंचार हुआ शोर हिंदू धर्म को पवित्र करके समा हिंदुओं को एड भंडे के नीचे लाकर विरेशी मंतों के आक्रमण से उसकी रक्ता करने का उनका तात्कालिक उदेत्य भी पूरा हुआ । इसमें सदेह नहीं है कि दयानन्द द्वारा संप्थापित श्राये समाज हिंदू धर्म के त्रक्नस्थल पर सेनिक चर्चा है श्रौर यदि कोई देश मक्त हिंदू उनके कार्य के मह को करफे दिखाना चाहे तो उसके लिये यह शोभा की बात ने होगी। हिंदू समाज की मयंकरतम त्रुटियों के मूल पर प्रहार करके श्रोर उसके समस्त वर्गों को एक साथ बोलने में समर्थ बना के आज आयें समाज तीन अत्यन्त महत्त्व के आन्दोलनों को हाथ में लिए 06 पाता घिपाएपूटी। 10९ 4 हुए है--शुद्धि, संगठन और शिक्षा प्रशाली । शुद्धि बस दीक्षा-संस्कार का नाम हे जिसके द्वारा श्रहिंदू जन हिंदूधमंमें प्रविष्ट किये जाते हैं । इस साधन से श्राये समाज न केवल दलित वगे ग्ौर अस्पूद्य कहे जाने वाले भाइयों को यज्ञो- पवीत देकर उन्हें अन्य हिन्दुओं के समक्ष दी नहीं बनाता अपितु उन हिन्दुओं को भी जो मुसलमान शरीर ईसाई बन गए हैं या बन जाते हैं, शुद्ध करके हिन्दु समाज में ले श्राता है। इतिहास साक्षी है कि हिन्दु धर्म ने ्रपने शक्ति बाल मँ भिदेशीय जातियों श्र राष्ट्रों के सहसों पुरुषो को श्रपनेमे घुला मिलाकर उनमें से कुछेक को उच्च सामाजिक स्थिति प्रदान की । विस्तार के वर्तमान युग में आयें समाज शुद्धि को अपने कायक्रमकाञ्म बनाकर प्राचीन कालीन महान्‌ हिन्दू नेताओं श्रौर राजनीतिज्ञ के पद्‌ चिन्हों पर चलरहा है । आयसमाज के कयेक्रम मँ हिन्दु सगठन का श्रमिप्राय है श्रात्मरक्ञा २ लिए हिन्दुओं का संगठन । न्य मतो के उपदेशकों द्वारा हिन्दू भमे पर किये गए श्ात्तेप और श्ाक्रमण को, किंसोमी हिन्दू को सहन न करना चाहिए | इतना हो नहीं; हिन्दुओं को अपने में वीर भाव धारण करके शत्रु के गढ़ में जाकर उसङ श्राक्रमण का सामना करना चाहिए । स्वामी दयानन्द ने ईसाई झर मुसलमानी नामके पुस्तकं पर श्राधारित- लेखमाला




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